रागों के वर्गीकरण
भारतीय शास्त्रीय संगीत में रागों के वर्गीकरण के लिए मुख्यतः दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं: थाट पद्धति और रागांग पद्धति। इन दोनों का उद्देश्य रागों को व्यवस्थित करना है, लेकिन इनके सिद्धांत और दृष्टिकोण में अंतर है।
थाट पद्धति:
थाट पद्धति में रागों का वर्गीकरण उनके स्वरों के आधार पर किया जाता है। इसमें सप्तक के सात स्वरों (स, रे, ग, म, प, ध, नि) के संयोजन से थाट बनाए जाते हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में 10 प्रमुख थाट माने गए हैं, जैसे बिलावल, खमाज, कल्याण, आदि। प्रत्येक थाट में स्वरों के आरोह-अवरोह का विशिष्ट क्रम होता है, जिससे संबंधित रागों की पहचान की जाती है। थाट पद्धति रागों के स्वरलिपि और संरचना पर केंद्रित होती है।
रागांग पद्धति:
रागांग पद्धति में रागों का वर्गीकरण उनके मुख्य स्वरूप, चलन और विशेषताओं के आधार पर किया जाता है। इस पद्धति में रागों को उनके मूल राग (रागांग) के आधार पर समूहित किया जाता है। रागांग वह प्रमुख राग होता है, जिससे अन्य राग उत्पन्न होते हैं या प्रभावित होते हैं। इस पद्धति में रागों की भावनात्मक अभिव्यक्ति, समय और प्रस्तुति शैली पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
विश्लेषण:
थाट पद्धति एक संरचनात्मक दृष्टिकोण प्रदान करती है, जो रागों के स्वरों की वैज्ञानिक समझ विकसित करने में सहायक है। यह पद्धति रागों की स्वरलिपि और तकनीकी पहलुओं पर जोर देती है। वहीं, रागांग पद्धति रागों की भावनात्मक और सांस्कृतिक गहराई को उजागर करती है, जिससे संगीतकार और श्रोता रागों की आत्मा को समझ सकते हैं।
दोनों पद्धतियाँ अपने-अपने स्थान पर महत्वपूर्ण हैं। थाट पद्धति रागों की संरचना और तकनीकी ज्ञान के लिए उपयोगी है, जबकि रागांग पद्धति रागों की भावनात्मक और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देती है। संगीत शिक्षा और प्रस्तुति में इन दोनों पद्धतियों का समन्वय संगीत की गहनता और व्यापकता को समृद्ध करता है।

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