ऐसे होती है देश की संस्कृति
संस्कृति का अर्थ
बोलचाल की भाषा में सभ्यता तथा संस्कृति, ये दोनों शब्द युगल रूप में साथ-साथ प्रयोग में लाये जाते हैं। यद्यपि इन दोनों का सम्बन्ध भी घनिष्ट है तथापि दोनों में पर्याप्त भिन्नता है। सभ्यता यदि शरीर है तो संस्कृति आत्मा है। जहाँ सभ्यता मानव के बाह्य रूप को उजागर करतो है, वहीं संस्कृति उसकी आत्मा, विचारों तथा संस्कारों का उल्लेख करती है। सभ्यता का विकास मूलतः भौगोलिक बातावरण तथा ऐतिहासिक अनुभवों पर निर्भर करता है, इसका रूप बदलता रहता है। इसके विपरीत कुछ ऐसे गुण होते हैं जो समाज विशेष के अभिन्न अंग बन जाते हैं, जिनमें उस समाज विशेष की आत्मा होती है। इनमें हजारों वर्षों में थोड़ा-सा ही परिवर्तन आता है, वह परिवर्तन भी, किसी समाज सुधारक अथवा किसी धार्मिक नेता के आह्वान पर अथवा क्रांति तथा विरोध के बाद। सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति समाज की गहरी आस्था होती है तथा सामाजिक डर के कारण, चली आरही मान्यताओं का उल्लंघन अथवा उनमें परिवर्तन शीघ्र स्वीकार नहीं किया जाता है। इसी प्रकार किसी राष्ट्र की अपनी संस्कृति होती है, जिसमें समाज की आत्मा होती है। इसका विकास अनेक परिस्थितियों के कारण होता है और ये नियम, तरीके उस राष्ट्र के लोगों के अभिन्न अंग बन जाते हैं। ये गुण समाज अथवा जाति विशेष को संस्कारों के रूप में प्राप्त होते है, जिनका उल्लंघन समाज के डर से नहीं किया जाता। इस प्रकार के मान्यता प्राप्त नैतिक, मानसिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक तथा सामाजिक आदर्श पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते हैं। ऐसे संस्कार-जन्य गुण ही संस्कृति कहलाते है।
अंग्रेजी में संस्कृति के लिए 'Culture' शब्द है। इस शब्द का सम्बन्ध 'Cultivation' शब्द से है, जिसका अर्थ है 'खेती'। आचार्य नरेन्द्रदेव ने इसीलिये कहा है- "संस्कृति चित्तभूमि की खेती है।" अतः इसका सम्बन्ध हृदय, मस्तिष्क, रुचि और बुद्धि से है। यह मनुष्य की सहज प्रवृत्तियों, शक्तियों तथा उसके परिष्कार का द्योतक है। हिन्दी साहित्य में यह माना जाता है कि संस्कृति शब्द 'सम्' उपसर्ग के 'कृ' धातु के योग से बनता है, जिसका अर्थ है शुद्ध या परिष्कृत करना ।
ब्रह्मानन्द सरस्वती ने संस्कृति शब्द को इस प्रकार स्पष्ट किया है- 'सम्' उपसर्ग के साथ 'कृ' धातु व भूषण के रूप में 'सुट्' का आगमन करके 'क्तन्' प्रत्यय जोड़ने से संस्कृति शब्द बना। अतः संस्कृति मनुष्य की वैयक्तिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनैतिक जीवन के समस्त क्षेत्रों में लौकिक तथा पारलौकिक उन्नति की चेष्टाएँ है। संस्कृति के अर्थ को भलीभांति समझने के लिए विभिन्न परिभाषाओं का अध्ययन आवश्यक है।