श्रोता के गुण
किसी भी श्रोता में कुछ बातें, सभा के नियम, धैर्य आदि का पालन करने की आदत होगी तभी वह एक अच्छे श्रोता की श्रेणी में आ सकेगा । गायन वादन के कार्यक्रम को सफल बनाने में श्रोता के ये गुण बहुत ही सहयोगी सिद्ध होते हैं। अतः कुछ गुण हम निम्न बिन्दुओं के रूप में देख सकते हैं ।
(1) बुद्धि तत्व - शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में बुद्धि तत्व का विशेष महत्व होता है। सही राग पहचानना, ताल की समझ, गायक वादक की कला की परख, बुद्धि विना सम्भव नहीं। कलाकार की कुशलता, सीमाओं,देशकाल आदि का ज्ञान भी बुद्धि के अभाव में व्यर्थ है। किसी भी कार्यक्रम में, यदि श्रोता बुद्धिमान होगा, तभी वह समझ में न आने अथवा समझ आने पर, अपने भावों को अथवा रोष खुशी को सही तरीके से पेश कर सकेगा ।
(2) कला तत्व - श्रोता को प्रस्तुत कला (गायन वादन) के प्रारम्भिक सिद्धान्त जैसे- तान, मीड, तालों के नाम प्रकार, सम खाली अथवा स्वरों का ज्ञान होना चाहिए, तभी वह राग, रचना व प्रस्तुतीकरण को समझ सकेगा। अन्यथा जो जानकार नहीं होते वे तानों के लिए कहते हैं "गरारे कर रहे हैं" या वह सही समय पर प्रशंसात्मक क्रिया, दाद देना, झूमना अथवा सिर हिलाना नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार के श्रोता, कलाकार का हौसला पस्त करते हैं। कलाकार मूढ की तरह बैठे श्रोता को देखकर हतोत्साहित होते हैं। प्रस्तुतीकरण के समय श्रोता चार भिन्न-भिन्न प्रतिक्रि- याओं से गुजरता है-
(अ) संवेदनात्मक स्थिति- इसमें सभी जानकार, भिज्ञ, अनभिज्ञ, सभी प्रकार के श्रोता केवल ध्वनि सुनते हैं।
(आ) भावात्मक स्थिति- वे श्रोता जो संगीत की भाषा समझते हैं, वे राग विशेष, ताल, लयकारी को समझ आनन्दित होते हैं। संगीत की थोड़ी- सी समझ रखने वाले भी इस स्थिति तक पहुंचते हैं।
(इ) कल्पना की एकात्मकता - जो संगीत सीखे हुए होते हैं, वही इस स्थिति तक पहुँचते हैं। इसमें श्रोता स्वयं एहले से कुछ कल्पना करता है । कभी कलाकार द्वारा किए गये नवीन प्रयोग को उत्कण्ठा से सुनता है तथा कलाकार की रचना से एकात्म स्थापित करने की चेष्टा करता है।
(ई) प्रतिक्रियात्मक स्थिति- श्रोता हमेशा कुछ नवीनता व सौन्दर्य चाहता है, तथा गायक कोई तिहाई ले, भिन्न प्रकार से मुखड़ा ले, कोई विशेष स्वर संगति, इस प्रकार के कार्यों से जानकार श्रोता प्रशंसासूचक हरकत करता है, जैसे वाह-वाह कहना, सिर को हिलाकर खुशी जाहिर करना आदि ।
उपरोक्त चारों स्थिति में कला तत्व जिन श्रोताओं में होता है, वे चारों स्थिति में पहुंचते हैं व कला तत्व के ज्ञान विहीन श्रोता प्रथम दो स्थिति तक ही पहुंचते हैं, बाद की स्थिति में भी उन्हें कुछ समझ में नहीं आता, वे उसमें भी केवल ध्वनि व ताल का आनन्द ही लेते हैं।