कला का अर्थ : भाग १

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कला-का-अर्थ

कला का अर्थ 

भाग १ 


कला क्या है ?


                किसी भी कार्य को चतुराई पूर्वक, कुशलता के साथ, सुन्दर रूप में किया जाय, उसे बोलचाल की भाषा में कला कहा जाता है। प्राचीन काल में भारत में 64 कलाएँ मानी जाती थीं, जो चारु तथा कारु नामक भेद से विभक्त थीं । कारु का सम्बन्ध उपयोगिता से था और चारु का केवल सुन्दरता से । आधुनिक समय में कला शब्द हर कार्य के साथ जुड़ गया है, जैसे- पाक कला, गृह-कला, बुनाई-सिलाई कला, यहां तक कि शरीर के रख-रखाव से सम्बन्धित केशभूषा भी कला मानी जाती है। इस प्रकार कला शब्द का प्रयोग बोलचाल में जहां-वहां कर लिया जाता है।


                कला शब्द की उत्त्पत्ति 'कल्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ है 'उत्पन्न करना', अर्थात् कुछ नवीन बनाना। कला एक व्यापक व विस्तृत विषय है, जिसका अपना शास्त्र, नियम है, इसलिए साधारण अर्थ द्वारा कला का पूर्ण परिचय प्राप्त नहीं हो सकता। कला को भली भांति समझने के लिए यह आवश्यक है कि इसके विषय में विभिन्न विद्वान विचारकों के मतों का अध्ययन किया जाय। ये विद्वान कला को समय, परिस्थिति की मांग के अनुसार भिन्न रूप में देखते हैं और इसी कारण उनकी कला के सम्बन्ध में भिन्न धारणाएँ हैं। यह विभिन्न धारनाए ध्यान में रखते हुए कल के ब्लॉग में कला की परिभाषा का अभ्यास करेंगे | 


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