तबला वाद्य की उत्पत्ती के संबंध मे प्रचलित विभिन्न मतों की समीक्षा

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तबला-उत्पत्ति

 तबला वाद्य की उत्पत्ती के संबंध मे प्रचलित विभिन्न मतों की समीक्षा


                तबला वाद्य वर्तमान युग का सर्वाधिक प्रतिष्ठित प्रचलित एवं लोकप्रिय वाद्य है। इस वाद्य की उत्पति के संबंध में कई विद्वान एवं बुजुर्गों ने काफी संशोधन किया है। किन्तु आज तक इस संदर्भ में कोई भी ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है। तबले की उत्पति के संबंध में उनके मत प्रवाह प्रचलित है। इन विभिन्न मतों के आधार पर तबले के उत्पती के बारे में समीक्षा करने का यहाँ प्रयास किया गया है।


१) अमीर खुसरो ने १३ वी सदी में तबले की खोज की, ऐसा मानने वाला बहुत बड़ा वर्ग है किन्तु उनकी खुद की किताबों मे इस वाद्य का कोई उल्लेख नही है।


२) अमीर खुसरो के पूर्व जितने भी अवनध्द वाद्य उपलब्ध थे उन्हे "तब्ल" नाम से जाना जाता था । अरबी फारसी तथा तुर्की इत्यादि देशों के उर्ध्वमुखी अवनध्द वाद्यों के लिए "तब्ल" शब्द का प्रयोग होता था ।


३) "तब्ल" शब्द का उपयोग युद्ध के समय प्रयोग मे आने वाले नगाडे के लिये भी किया जाता था ।


४) अमीर खुसरो के काल के पश्चात सतरहवी सदी तक किसी भी ग्रंथ में तबला वाद्य का उल्लेख नही है।


५) डॉ. अबान मिस्त्री जी ने कार्ला (लोणावला, महाराष्ट्र) की प्राचीन गुफाओ मे एक स्त्री तबला सदृश वाद्य वादन करते हुए शिल्प का संदर्भ दिया है। उन्होंने "संगीत तबला अंक" के एक लेख मे छठी सदी के "बदामी" के एक शिल्प में एवं एक व्यक्ति तबले डग्गे जैसा वाद्य बजाते हुए दिखाये जाने का उल्लेख भी किया है। 


६) कुछ मतानुसार मेसापोटेमियन, सिरीयन, अरेबियन इन संस्कृतियो से तबला वाद्य भारत में आया है।


७) त्रिपुष्कर नामक वाद्य के उर्ध्वक एवं अलिंग्य का, तबला आधुनिक रूप है।  उल्लेखनीय है की इस वादय पर मिट्टी का लेप चढाकर गूँज कम ज्यादा करने की व्यवस्था की गई और उंगलियों से वादन करने की प्रथा शुरू हुई | 


८) महाराष्ट्र के संबल वाद्य की बनावट तबले जैसी होती है। इसलिये तबला संबल का सुधारित रूप है। यह भी एक मत है।


९) पंजाब प्रांत मे बजाये जाने वाला दुक्कड का भी तबला सुधारित रूप है।


१०) कोलकाता के एक म्युझियम मे शहाजहाँ कालीन एक चित्र है उसमे एक स्त्री कमर पर बँधा तबला बजा रही है।


११) आचार्य बृहस्पति जी के अनुसार तबले के आविष्कर्ता सदारंग के छोटे भाई उ. खुसरो खाँ थे। वे अनेक वाद्य वादन में पारंगत थे। खुसरों खाँ ने सितार वाद्य की संगति के लिये तबले का आविष्कार किया। ख्याल की संगति के लिये भी पखावज का उपयोग ठीक नहीं होने के कारण भी तबले का उपयोग किया जाने लगा ऐसा भी मत है।


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