ललित कलाओं में संगीत का स्थान

0

ललित-कला

 ललित कलाओं में संगीत का स्थान


              यह बात सर्वविदित है कि संगीत सभी कलाओं में प्राचीन है। जब मनुष्य ने भाषा नहीं सीखी थी तब भी किसी-न-किसी रूप में (अविकसित ही सही) संगीत था। आदि मानव भी अपने उद्गार, खुशी आदि गुनगुनाकर ही व्यक्त करता होगा। जिस प्रकार चिड़ियों को चहचहाना कोई नहीं सिखाता, पक्षी को उड़ना, शिशु को रोना-हँसना स्वतः आता है, उसी प्रकार मनुष्य को गुनगुनाना, गाना, नाचना स्वतः आता है; यह बात अलग है कि उसका रूप परिष्कृत न हो। अन्य कलाओं का जन्म बाद में हुआ, ऐसी कल्पना की जा सकती है। भौतिक सामग्री तथा उपकरण, उपयोगिता, प्रभाव क्षेत्र आदि के आधार पर हम इन कलाओं का स्थान तथा इनमें संगीत के स्थान को निश्चित कर सकते हैं। स्थान निर्णय के लिए निम्न तर्क आधार रूप में दिये जा सकते हैं-


(1) भौतिक साधन तथा उपकरणों की आवश्यकता - इस आधार पर देखने से कलाओं को क्रम में रखने में बहुत मदद मिलती है। वास्तुकला में इंट, पत्थर, चूना, मिट्टो, लकड़ी आदि अनेक वस्तुओं तथा छैनी, हथौड़ा, खुरपी आदि उपकरणों की आवश्यकता होती है। मूर्तिकला में साधन केवल पत्थर है या चूना प्लास्टर और उपकरणों में छैनी हथौड़ी। चित्रकला में कागज अथवा कैनवास के साथ तूलिका व रंगों की आवश्यकता होती है।काव्य व संगीत के लिए केवल नाद व शब्द की। इस आधार पर वास्तु, मूर्ति, चित्र में स्थूल साधनों की आवश्यकता क्रमशः अधिक से कम की ओर है। काव्य व संगीत में इनकी कोई आवश्यकता नहीं, अतः ये तीनों से श्रेष्ठ हैं। काव्य में भाषा के साथ नाद भी रहता है, जबकि संगीत में केवल नाद ही प्रधान है। अतः संगीत का स्थान श्रेष्ठ है।


(2) चल अचल के आधार पर - कला की श्रेष्ठता का एक मापदण्ड है, उसका अधिकाधिक लोगों पर प्रभाव हो। स्थापत्य कला ऐसी कला है जो पूर्ण रूप से स्थिर है, अचल है। भवन को एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता। अतः स्वाभाविक है कि उसे हर एक व्यक्ति देखे या आनन्दित हो, यह संभव नहीं। विश्व में अनेक लोगों ने, यहां तक कि भारत के ही अनेक लोगों ने, ताजमहल नहीं देखा है, अतः वे उसके सौन्दर्य दर्शन से वंचित हैं। मूर्ति कला में यदि मूर्ति छोटी हो तभी उसको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सम्भव है फिर भी उसमें खण्डित होने का भय रहता है। कुछ मूर्तियां अपनी विशालता के कारण ही अनुपम हैं, इन्हें भी स्थिर व अचल रखा जाता है, अजन्ता की अनेक मूर्तियाँ इसका उदाहरण है। इन दोनों कलाओं का प्रभाव सर्वस्थानिक नहीं हो सकता। देलवाड़ा का मन्दिर, रामेश्वरम्, नाथद्वारा आदि के मन्दिर ऐसे ही उत्कृष्ट नमूने हैं जिनको देखना सभी भारतीय लोगों के लिए संभव नहीं है तो विश्व के लोगों की क्या बात की जाय । चित्रकला पर दृष्टिपात करें तो ज्ञात होता है कि वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जायी जा सकती है, परन्तु उसका अवलोकन भी बहुत कम लोग ही करने जाते हैं तथा कर पाते हैं। काव्य तथा संगीत ऐसी कलाएँ हैं जो चल है तथा किसी भी स्थान अथवा समय पर पेश की जा सकती हैं। रेडियो, टेप, टी.वी. के माध्यम से इनका आनन्द सभी लोग तथा घर बैठे उठा सकते हैं और अधिक सूक्ष्म विश्लेषण से ज्ञात होता है कि संगीत का प्रभाव अधिक सरल व व्यापक रूप से पड़ता है, क्योंकि इसमें भाषाज्ञान, शिक्षाज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। अतः संगीत श्रेष्ठ है।


(3) नवीनीकरण - चू कि समय परिवर्तनशील है और भिन्न व्यक्तियों की रुचियाँ व कल्पनाएँ भिन्न होती हैं। कौनसी कला समय व परिस्थिति के अनुसार बदलने की क्षमता कितनी रखती है, यह भी विचारणीय है। स्थापत्य अथवा वास्तुकला में एक बार जो भवन (मन्दिर, राजभवन, स्मृति भवन) एक बार बनाया जाता है उसे तोड़कर बनवाना संभव नहीं है। मूर्ति- कला में यदि मूर्तिकार को कोई नवीन कल्पना उपजे तो वह बनी हुई मूति में उसेउतार नहीं सकता, उसे दोबारा नयी मूर्ति बनानी पड़ेगी। यही बात चित्रकला पर भी लागू होती है। इन्हें दोबारा बनाने में अर्थ व्यय करना पड़ता है। काव्य व संगीत में एक ही विषय पर समय-समय के कवियों ने अपनी कल्पना व शैली के द्वारा उसे नवीन रूप दिया। संगीत में एक ही राग को अनेक गायक वादक गाते-बजाते हैं, सभी कल्पना द्वारा उसे नवीनता प्रदान करते हैं। क्या हर मूर्तिकार मूर्ति में अपनी कल्पना को उतार सकता है अथवा वास्तुकार ताजमहल में अपनी कल्पना से उसे नवीनता दे सकता है ? नहीं दे सकता। अतः संगीत व काव्य दोनों ही इस दृष्टि से बिना किसी बाधा के नवीन रूप धारण करते हैं।


(4) प्रभाव की दृष्टि से -  प्रभाव के क्षेत्र के आधार पर देखें तो वास्तुकला, मूर्तिकला व चित्रकला का प्रभाव केवल मनुष्य तक सीमित है। पशु-पक्षी व जड़ वस्तुओं पर इनका कोई प्रभाव नहीं होता। एक गाय या घोड़े के लिए अस्तबल के रूप में स्थान का महत्व है, वही महत्त्व लाल किले या ताजमहल का है, वे उस स्थान पर भी मल-मूत्र त्याग देंगे। क्योंकि उन पर इन कृतियों की सुन्दरता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। काव्य का प्रभाव भी केवल मनुष्य तक सीमित है, लेकिन उसके लिए शिक्षित होना तथा भाषा ज्ञान होना जरूरी है। इस दृष्टि से काव्य का स्थान उक्त तीन कलाओं से नीचे का है। गुप्त जी की अथवा प्रसाद जी की कविताएँ अशिक्षित व्यक्ति अथवा हिन्दी भाषा के ज्ञान से रहित किसी विदेशी को सुनाएँ तो उन्हें कुछ समझ में नहीं आएगा, जबकि वे किसी भवन, मूति अथवा चित्र को देखकर उसे सराह सकते हैं। संगीत का प्रभाव सम्पूर्ण मानव जाति, पशु-पक्षी व प्रकृति पर पड़ता है, अर्थात् जड़, चेतन सभी संगीत द्वारा प्रभावित होते हैं ।


 (5) भावाभिव्यक्ति की शक्ति सभी कलाएँ मनुष्य के भावों की अभिव्यक्ति होती हैं। अतः जो कला अधिक से अधिक भावों की अभिव्यक्ति करने में सक्षम है, वही कला श्रेष्ठ है। वास्तुकला में सबसे कम भावों की अभिव्यक्ति संभव है। निश्चित नक्शे व योजना के अनुसार निर्माण कार्य किया जाता है, अतः स्थूल रूप ग्रहण करता है। सूक्ष्म भावों को उसमें दिखाया नहीं जा सकता। इससे कुछ अधिक स्वतंत्रता मूर्तिकार को होती है। वह अपने कुछ भाव उसमें दर्शा सकता है। परन्तु स्थूल होने के कारण सूक्ष्म भाव दर्शाना उसमें भी संभव नहीं है। मूर्तिकारों ने अनेक नृत्य मुद्राओं, वाद्यों को मूर्तिकला में स्थान देकर अमर किया है पर भावाभिव्यक्ति में वह पूर्ण सक्षम नहीं है। चित्रकला में रेखाओं व रंगों के माध्यम से इन दोनों की अपेक्षा अधिक भावों की अभिव्यक्ति हो सकती है। चित्रकला ने संगीत को अनेक रागचित्रों के माध्यम से साकार रूप दिया है तथापि स्थान, काल, सामग्री की सीमाएँ उसमें हैं। एक चित्र में प्रायः एक ही भाव की प्रधानता होती है, जबकि काव्य व संगीत में एक ही समय में भिन्न भाव दर्शाए जा सकते हैं। जैसे नृत्य में कृष्ण की गोपियों से छेड़छाड़, माता से शिकायत करने पर यशोदा का क्रोध करना, कृष्ण का डरना, रूठना, माता का स्नेह, ममता, सभी सूक्ष्म भाव दिखाए जाते हैं। इसी प्रकार काव्य में भी संभव है। इस प्रकार काव्य व संगीत दोनों ही भावाभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम हैं। अतः श्रेष्ठता का मुकाबला काव्य तथा संगीत, इन दो कलाओं में ही मूल रूप से है।


संगीत जगत ई-जर्नल आपके लिए ऐसी कई महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ लेके आ रहा है। हमसे फ्री में जुड़ने के लिए नीचे दिए गए सोशल मीडिया बटन पर क्लिक करके अभी जॉईन कीजिए।

संगीत की हर परीक्षा में आनेवाले महत्वपूर्ण विषयोंका विस्तृत विवेचन
WhatsApp GroupJoin Now
Telegram GroupJoin Now
Please Follow on FacebookFacebook
Please Follow on InstagramInstagram
Please Subscribe on YouTubeYouTube

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top