यंत्र वादकों के गुण दोष
प्राचीन ग्रन्थकारों ने वाद्य यंत्र बजाने वालों के गुण-दोषो का जो वर्णन किया है, उनका भावार्थ इस प्रकार है -
वादक के गुण
(१) गीत, वाद्य, नृत्य में पारंगत हो ।
(२) भिन्न-भिन्न वाद्यों (साजों) को बजाने में कुशल हो ।
(3) वाद्य यन्त्र बनाने की जानकारी रखने वाला हो ।
(४) ग्रह ज्ञान रखने वाला हो।
(५) अँगुली संचालन में कुशल हो ।
(६) ताल और लय का ज्ञान रखता हो।
(७) विभिन्न वाद्य यन्त्री के विषय में पूर्ण ज्ञान हो।
(८) हस्त संचालन में कुशल हो ।
(६) किस वाद्य यंत्र को बजाने में कौनसे शारीरिक अवयवो से सहायता मिलता है, इसका ज्ञान रखने वाला हो।
(१०) स्वरों के उतार-चढ़ाव का ज्ञान रखने वाला हो ।
वादक के दोष
जिन वादकों में उपरोक्त १० गुण नहीं है या जो वादक उक्त बातो का ज्ञान नहीं रखते और फिर भी किसी वाद्य को बजाने की चेष्टा करते हैं, वे सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । इस प्रकार उक्त १० गुणों का अभाव ही १० दोषों में बताया गया है।