सदारंग-अदारंग
ख्याल की बहुतसी चीजों में "सदा रंगीले मोमद सा" ऐसा नाम कई बार देखने में आता है। १८ वीं शताब्दी में न्यामतखां नाम के एक प्रसिद्ध बिनकार हो गये हैं। यह अपनी बनाई हुई चीजों में उस समय के बादशाह मोहम्मद शाह का नाम डाल दिया करते थे। बादशाह को प्रसन्न करने के लिए ही वे ऐसा किया करते थे। न्यामतखां अपना उपनाम 'सदारंगीले' रखकर साथ में बादशाह का नाम जोड़ भी दिया करते थे। 'सदारंगीले' को ही सदारंग भी कहा जाता था। न्यामतखां (सदारंग) के खान्दान के बारे में बताया जाता है कि ये तानसेन की पुत्री के खान्दान में दसवे व्यक्ति थे। इनके पिता का नाम लालसानीखां और बाबा का नाम खुशालखां था ।
यद्यपि ख्याल रचना का कार्य सर्व प्रथम अमीर खुसरो ने शुरू किया था, किन्तु उस समय ख्याल-रचना विशेष लोकप्रिय न हो सकी। इसके बाद सुल्तानहुसैन शर्की, बाजबहादुर, चंचलसेन, चांदखां, सूरजखां ने भी यही कार्य करने की चेष्टा की, किन्तु उन्हें भी विशेष सफलता न मिल सकी। न्यामतखां ने उनकी इन असफलताओं का कारण ढूंढ़ निकाला। इन्होंने अनुभव किया कि जब तक कविता में बादशाह का नाम न डाला जायेगा, तब तक वे अच्छी तरह प्रचलित नहीं हो सकेंगी। साथ ही इन्हें रूठे हुए बादशाह को भी खुश करना था, क्योंकि वेश्याओं को तालीम न देने पर एक बार बादशाह इनसे नाराज हो गये थे, अतः वे उपनाम "सदारंगीले" के साथ बादशाह का नाम तो डालने लगे, किन्तु इसकी खबर बादशाह को न होने दी कि यह कविता किसकी बनाई हुई है और सदारंग कौन है। इस प्रकार बहुतसी कवितायें न्यामतखां ने तैयारकरके अपने शागिर्दों को भी याद कराई ओर जब बादशाह को यह कवितायें ख्याल में गाकर सुनाई गई तो वे बडे प्रभावित हुए और यह जानने की इच्छा प्रगट की कि यह 'सदारंगीले' कौन है? न्यामतखां के शागिर्दो ने जवाब दिया कि हमारे उस्ताद् जिनका असली नाम न्यामतसा है, उनका ही तखल्लुस (उपनाम) 'सदारंगीले' है। बादशाह ने कहा अपने उस्ताद को बुलाकर लाओ। न्यामतखां दरबार मे उपस्थित हुए तो मोहम्मद शाह ने उनके पुराने अपराधों को क्षमा करके, उन्हें पुन आदर पूर्वक अपने दरबार में रख लिया और वे वीणा बजाकर गायकों का साथ करने के लिए स्थायी रूप से दरबार में रहने लगे। इस प्रकार सदारंग ने अपना रंग जमा लिया और गुणियों में आदर प्राप्त कर लिया ।
सदारंग के ख्यालो में विशेष रूप से श्रृंगार रस पाया जाता है। कहा जाता है कि सदारंग ने स्वयं अपनी ये चीजें महफिलो में नहीं गाई। उनका कहना था कि खुद अपने लिये या अपने खान्दान के लिये मैंने यह चीजें नहीं बनाई हैं, बल्कि बादशाह सलामत को खुश करने के उद्देश्य से ही इनकी रचना की गई है। इतना होते हुए भी इनकी रचनाए समाज में काफी फैल गई। ख्याल गायक और गायिकाओं ने इनकी चीजें खूब अपनाई ।
सदारंग के साथ-साथ कुछ चीजों में अदारंग का नाम भी पाया जाता है। इसके बारे में एक इतिहासकार का कथन है कि न्यामतखां के २ पुत्र थे, जिनका नाम फीरोजखां और भूपतरखां था। 'अदारंग फीरोजखां का ही उपनाम था। भूपतरखां का उपनाम महारंग था। इस प्रकार पिता के साथ-साथ दोनों पुत्र भी संगीत के क्षेत्र में अपना नाम सर्वदा के लिये अमर बना गये ।