उस्तादों द्वारा किये गए विशेष शब्द प्रयोग
आदत-जिगर-हिसाब
वैसे पुराने उस्ताद, विशेष पढे लिखे नहीं हैं, यातचीत करते समय बहुधा कुछ ऐसे शब्द सुनाई देते हैं, जिनका अर्थ जानने के लिये संगीत के विद्यार्थी उत्सुक रहते हैं। उन शब्दों में ही आदत, जिगर और हिसाब आते हैं जिनका उल्लेख यहा किया जाता है।
प्राचीन गुणी गायकों का कहना है कि गायक में "आदत, जिगर और हिसाब" इनमें से कम-से-कम प्रथम दो बाते तो होनी ही चाहिये, अन्यया वह अपनी संगीत साधना में सफलता प्राप्त नहीं कर सकेगा। तीसरी निशेषता "हिसाब" प्राय ताल वादकों से सम्बन्धित है, जिसका उल्लेख नीचे किया जायगा।
आदत-उत्तम रियाज (अभ्यास) भली प्रकार तान लेने की सामर्थ्य प्राप्त करने की क्षमता रखना "आदत" कहलाता है। जो संगीत प्रेमी नियमित रूप से नित्यप्रति अभ्यास करता रहता है, उसके उच्चारण में गंभीरता और स्वर माधुर्य पेदा हो जाता है, उसके गाने की "आदत" जब तक कायम रहेगी तब तक उसे सफलता मिलती रहेगी, इसके विरुद्ध कोई बड़े से बडा गायक भी जब अपना रियाज छोड देता है तो उसके गायन में वह आकर्पण नहीं रहता जो कि रियाज जारी रहने पर सम्भव हो सकता था। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि उस गायक की गाने की "आदत" छूट गई।
जिगर-आयुर्वेद में 'जिगर' शरीर के उस भाग को कहा जाता है, जिसके द्वारा रक्त बनता है, लेकिन संगीत तज्ञ के कोप में इसका अर्थ है "संगीतमय स्वभाव" अर्थात् (Musical Temperament) राग की बढत करते समय किस स्थान पर कौनसा स्वर समुदाय सुन्दर और आकर्षक प्रतीत होगा। राग में कौन से स्वर लगाने पर राग का माधुर्य बढ़ेगा इत्यादि बातों का ज्ञान रखना ही संगीत स्वभाव के अन्तर्गत आता है और इसे ही संगीत तज्ञ की भाषा में "जिगर" कहते हैं।
हिसाब - राग व ताल के शास्त्रीय नियमो की जानकारी रखना ही इन तीनों में से जो भी गुण उसमे कम होगा यह उतना ही अधूरा समझा जायगा।