उस्ताद नत्थू खाँ
दिल्ली घराने के परंपरागत तबले को अपनी विलक्षण प्रतिभा से जिन्होंने एक अलग और खुबसूरत आयाम दिया वे तबलावादक थे उस्ताद नत्थू खाँ साहब । उस्ताद नत्थु खाँ साहब का जन्म सन १८७५ में दिल्ली शहर में हुआ। उनकी तबले की पूरी शिक्षा उनके पिता उस्ताद बोलीबख्श खां साहब से हुई। उस्ताद बोलीबख्श खाँ साहब दिल्ली घराने के संस्थापक उस्ताद सिदधार खाँ साहब की वंश परंपरा मे ही पले बढ़े थे और इसलिये उस्ताद नत्थू खाँ साहब को दिल्ली घराने का तबला विरासत मे ही मिला था ।
दिल्ली घराने का तबलावादन पूर्वांगप्रधान है, अर्थात इस घराने के वादन मे पेशकार, कायदा और रेला आदि रचनाओं का विकास और विचार अधिक मात्रा में हुआ है। इन रचनाओ का, खास कर कायदे का विस्तार उ. नत्थू खाँ साहब इस प्रकार करते थे कि सुननेवाले को ऐसा लगता था की किसी ख्याल का विस्तार हो रहा है। 'धातिट धातिट धाधा तिट धागे तिनाकिना...' इस कायदे का विस्तार वे जब करते थे तब हर एक बोल को एक नये कायदे का रूप प्राप्त होता था। खाँ साहब के बारे मे उनके गंडाबंध शागिर्द और महान तबलावादक उस्ताद हबीबुद्दिन खाँ कहते थे कि "हमारे उस्ताद नत्थू खाँ साहब जब तबला बजाते थे तब वे सोने की स्याही से तबला लिखते थे।" उ. नत्थू खाँ साहब के हाथ की तैयारी भी असाधारण थी। उनके दो उंगलियो से बजनेवाले धिरधिर से प्रभावित होकर मैने दो उंगलियो के धिरधिर का रियाज किया है। ऐसा उस्ताद अमीर हुसेन खाँ साहब कहते थे ।
२० वी सदी के पूर्वार्ध मे तबला विश्व पर उस्ताद नत्थू खाँ साहब का बडा प्रभाव था। आगे चलकर जिन तबलावादकों ने असीम कीर्ति पायी ऐसे उ. थिरकवा, खाँ उ. अमीर हुसेन और उ. हबीहुद्दिन खाँ साहब के वादन पर उ. नत्थू खाँ साहब की वादन शैली का काफी असर था, ऐसा लगता है। उ. नत्थू खाँ साहब के तबलावादन की जो ध्वनिमुद्रिका उपलब्ध है उसे सुनते समय इस बात की पुष्टि होती है।
स्वतंत्र तबलावादन को एक अलग और अनोखी दिशा देनेवाले इस महान तबलावादक का सन १९४० मे निधन हुआ।