गायन प्रकार
जानकारी
त्रिवट
यह भी तराने की तरह गाया जाता है, किन्तु तराने से त्रिवट गायकी कुछ कठिन है। तिरवट में मृदंग के बोल अधिक होते हैं, इसे सभी रागों में गाया जा सकता है। वर्तमान समय में त्रिवट गायकी का प्रचार कम हो गया है।
होरी-धमार
'होरी' नाम के गीत को धमार ताल में गाते हैं, तो उसे 'धमार' कहा जाता है। धमार गायन में प्राय होली का वर्णन रहता है। धमार में दुगुन, चौगुन, गमक इत्यादि का प्रयोग होता है, अत यह कठिन गायकी है। धमार के गायकों को स्वर ताल और राग का अच्छा ज्ञान होना चाहिये। प्राय देखा जाता है कि ख्याल गायकों की अपेक्षा ध्रुपद गायक 'धमार' को अच्छा गा लेते हैं। 'धमार' गाने में ख्याल के समान तानें नहीं ली जातीं ।
दादरा
दादरा एक ताल का भी नाम है, किन्तु एक प्रकार की गायकी को भी 'दादरा' कहते हैं। इसकी चाल गजल से कुछ मिलती जुलती होती है। मध्य तथा द्रुतलय में दादरा बहुत अच्छा मालूम पड़ता है। इसमें प्रायः शृंगार रस के गीत होते हैं।
सादरा
इस गाने की लय भी दादरा से बहुत कुछ मिलती-जुलती होती है। सादरा को अधिकतर कत्थक गायक एवं वेश्यायें गाती हैं। इसमें कहरवा, रूपक, झपताल तथा दादरा इन तालों का प्रयोग होता है। ठुमरी गायक 'सादरा' भली प्रकार गा लेते हैं, इसके गीतों में प्रायः शृंगार ही अधिक मिलता है।
खमसा
खमसा गाने का प्रचार मुसलमान धर्मियो में अधिक पाया जाता है। इसके गीतों में उर्दू भाषा का प्रयोग ही अधिक मिलेगा। खमसा की गायकी कव्वाली से मिलती-जुलती होती है।
रागमाला
जब किसी एक गीत में कई रागों का वर्णन आता है और उस गीत की एक-एक लाइन में एक-एक राग के स्वर लगते जाते हैं और उस राग का नाम भी आता जाता है, ऐसी रचना को 'रागमाला' कहते हैं।