राग वर्णन भाग - 5

0


  राग वर्णन  भाग - 5


१)  अडाणा   - कोई-कोई ग्रन्थकार इस राग में तीव्र धैवत लगाते हैं और इसे काफी थाट का राग मानते हैं। इस राग का आरोह करते समय गान्धार छोड़ देते हैं। किन्तु आरोह में गन्धार "निसागम" इस प्रकार प्रायः लिया जाता है। अवरोह में "ग म रे सा" इस प्रकार वक्र गंधार है। मध्य और तार संप्तक में इसका विस्तार अधिक है।



२) धानी - कोई-कोई गायक धानी के अवरोह में थोड़ा सा रिषभ लेते हैं। प्राचीन ग्रन्थों में भी धानी का उल्लेख मिलता है। संगीत पारिजात में रे वर्जित तथा रेध वर्जित इस प्रकार धानी के २ रूप दिये हैं।



३) मांड - यह राग मालवा (राजस्थान) प्रान्त से उत्पन्न हुआ है, इसका स्वरूप वक्र है। इस राग मे सा, म, प यह स्वर अत्यन्त सहत्वपूर्ण हैं, निषाद पर कम्पन इम राग की विशेषता है। आरोह में रे - ध स्वर दुर्बल हैं, अवरोह में वक्र हैं। जैसे साम, रेम, गप इत्यादि ।



४) गौड मल्हार - इस राग के बारे में २ मत हैं। एक मत इस राग को काफी थाट का मानता है तो दूसरा मत इमे खमाज थाट का बताता है। यह मतभेद लेकर गन्धार स्वर के बारे में दोनों मत अपने विचार भिन्न रखते हैं। ख्याल गायक तीव्र गन्धार लेते हैं और ध्रुपद के गायक कोमल ग लगाते हैं, एव कभी-कभी दोनों गन्धारों का प्रयोग भी इस राग में दिखाई देता है। यह मौसमी राग है, अत इसके गीतों में प्राय वर्षाऋतु का वान मिलता है।



५) झिंजोटी - इस राग का विस्तार मन्द्र व मध्य सप्तक में विशेष रूप से रहता है। "धसा, रे मग," यह स्वर समुदाय राग वाचक है।



६) श्री - यह बहुत गंभीर और लोकप्रिय राग है। रे प की संगती जब इस राग में करते हैं, तब यह बहुत मधुर मालुम होता है। "सा ग रे रे सा" यह स्वर समुदाय इसमें प्रिय मालुम देता है।



७) ललित/ललत- इस राग में ध म ध म यह स्वर प्रयोग तथा नी रे ग म म ग, यह स्वर समुदाय राग की विशेषता को व्यक्त करने हैं। कुछ प्रथों में इस राग में कोमल धैवत है, किन्तु इसमे तीव्र धैवत ही लिया जाता है।



८) मियाँ की मल्हार - कानड़ा और मल्हार के संयोग से यह राग बना है। इस राग में दोनों निषाद लगते हैं और कभी-कभी कुशल गायक एक के बाद दूसरा निषाद बराबर लेकर भी राग हानि मे इसे बचा लेते हैं। इम राग का आलाप विलंबित लय में करके उसका विस्तार मन्द्र स्थान में होता है, तब वह सुन्दर और कर्णप्रिय लगता है। कहते हैं कि यह राग मिया तानसेन के द्वारा श्रनिष्कृत हुआ है। वादी संवादी के बारे में कुछ लोगों का मत वादी म, संवादी प के पक्ष में है, किन्तु पं. भातखण्डे के अनुयायी अधिकतर म वादी तथा सा संवादी ही मानते हैं।



९) दरबारी कानडा - इम राग में ग दुर्बल हैं, अत गुणी लोग जलद और सीधी तानों में इस स्वर को बिलकुल ही छोड़ देते हैं। गन्धार पर आन्दोलन इस राग की विचित्रता बढाता है। नि प की संगत इसमें बडी प्यारी लगती है। कहते हैं कि मिया तानसेन ने यह राग तैयार करके दरबार में  बादशाह को सुनाकर प्रसन्न किया था ।



१०) तोडी - इस राग में पंचम स्वर का प्रयोग कुछ कमी के साथ करना चाहिए। नये विद्यार्थी को यह राग गाते समय, विकृत स्वरों का उचित स्थानों पर उपयोग करने में कठिनाई पड़ती है। इस राग की विचित्रता रे, ग तथा ध इन तीन स्वरों पर निर्भर है। तोड़ी कई प्रकार की प्रचलित है, किन्तु राग तोड़ी के लिये शुद्ध तोड़ी, दरबारी तोड़ी अथवा मियां की तोड़ी यह नाम लिये जाते हैं। इनके अतिरिक्त बिलासखानी तोड़ी, गुर्जरी तोडी, देसी तोड़ी, आसावरी तोड़ी, गान्धारी तोड़ी, जौनपुरी तोड़ी, बहादुरी तोड़ी, लाचारी तोड़ी इत्यादि जितने नाम हैं, वे इस राग से भिन्नता रखते है अर्थात् वे राग बिलकुल अलग-अलग है।


संगीत जगत ई-जर्नल आपके लिए ऐसी कई महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ लेके आ रहा है। हमसे फ्री में जुड़ने के लिए नीचे दिए गए सोशल मीडिया बटन पर क्लिक करके अभी जॉईन कीजिए।

संगीत की हर परीक्षा में आनेवाले महत्वपूर्ण विषयोंका विस्तृत विवेचन
WhatsApp GroupJoin Now
Telegram GroupJoin Now
Please Follow on FacebookFacebook
Please Follow on InstagramInstagram
Please Subscribe on YouTubeYouTube

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top