तबला और उसके अंग
तबले के दो मुख्य अंग हैं ।
अ) तबला / दायाँ
ब) डग्गा / बायाँ
दोनों अंगों को मिलाकर ही तबला कहा जाता है। इसीलिए इसे तबला जोड़ी भी कहा जाता है।
अ) तबला / दायाँ - तबला अधिकतर दाहिने हाथ (Right Hand) से बजाया जाता है। तबले के 5 प्रमुख अंग माने जाते हैं । 1) लकड़ी या कठरा 2) पूड़ी 3) बद्धी (वादी) 4) गड्ढे 5) गुडरी
अब हम इन पाँच अंगो के बारे में जानकारी लेते हैं।
1) लकड़ी: दाहिने तबले के इस महत्त्वपूर्ण अंग पर ही तबले के अन्य अंग स्थित होते हैं। लकड़ी शीसम, बिजासार, नीम, आम, खैर आदि की होती हैं तथा तबले की भाषा में उसे 'खोड़' (कुडी) कहते हैं। खोड़ अंदर से खोखला होता हैं। खोड़ एक फुट ऊंचा होता है तथा उसका मुँह पाँच से सात इंच का होता हैं। खोड़ के मुँह से ही तबले कास्वर निश्चित किया जाता हैं। मुँह जितना छोटा होगा स्वर उतना ही अधिक (टीप) होता हैं। प्रायः काली एक के टिप के तबले का मुँह 5.5 (साडेपाँच) इंच होता हैं, काली दो टिप 5.25 (सवा पाँच) इंच तथा काली एक के ढाले तबले का मुँह 7 (सात) इंच होता हैं।
2) पूड़ी : तबले के खोड़ के मुँह पर मढे हुये चमड़े के संपूर्ण भाग को पूड़ी कहते हैं। पूड़ी बकरी के चमड़े से बनाई जाती हैं। पूड़ी के उपविभाग निम्न प्रकार के होते हैं।
अ ) गजरा ब) चाँट / किनार क) लव मैदान ड) स्याही इ) घर
अ) गजरा : पूड़ी के चारो ओर चमड़े की गुथीं हुई सिंगार को (चमड़े से सजी हुई) गजरा कहते हैं। गजरे से ही पूड़ी तबले के खोड़ के मुँह पर बिठाई जाती हैं ।
ब) चाँट / किनार: पूड़ी पर गजरे के पास चारों ओर आधे से पौने इंच चौडी चमड़े की गोठ होती हैं उसे चाँटी या किनार कहा जाता है।
क) लव / मैदान: पूड़ी की चाँटी या किनार तथा स्याही के बीच जो खाली भाग होता हैं, उसे लव या मैदान कहते हैं ।
ड) स्याही : पूड़ी के बीच गोलाकार तथा मोटा काला मसाला लगा होता है, उसे स्याही कहते हैं। स्याही लोहे की राख, लोहे तथा कोयले के मिश्रण से बनाई जाती हैं। स्याही की एक-एक परत लगाकर उसे कसौटी के पत्थर से रगड़ा जाता हैं, तथा संपूर्ण गोलाकार रुप दिया जाता हैं। स्याही के कारण ही तबले में आँस (Vibration) टिकता है तथा ऑसदार ध्वनि निर्मित होती हैं।
इ) घर - गजरे मे १६ छेद होते हैं, जिसे घर कहा जाता है। इन घरों में से बद्धी (वादी) डालकर पुडी को खोड के मुहपर कसा जाता है ।
3) बद्धी / वादी गजरे के घरों में से आनेवाले चमड़े के जिस पट्टी से पूडी खोड़ पर कसी जाती हैं, उस चमड़े की पट्टी को बद्धी या वादी कहते हैं। वादी विशेषकर भैंस के खाल से बनाई जाती हैं।
4) गठ्ठे : तबले के वादी में कसे हुये लकड़ी के गोल लंबे टुकड़ो को गट्टे कहते हैं । गड्ढे का व्यास एक इंच तथा लंबाई तीन इंच तक होती हैं। तबले के 16 घरो में आठ गठ्ठे होते हैं तथा उन्हें ऊपर-नीचे कर तबले को स्वर में मिलाया जाता हैं ।
5) गुड़री : तबले के निचले या फिर पहिये में चमड़े की पट्टी का जो घेरा होता हैं, उसे गुड़री कहते हैं। गजरे के घरों में से आनेवाली वादी इसी गुड़री में से निकालकर पूडी खोड पर कसी जाती हैं।डुग्गा (बायाँ) हैं। डग्गा खासकर बायें हाथ से बजाया जाता हैं। उसके चार मुख्य अंग माने जाते है |
1) कुड़ी
2) पूड़ी
3) बद्धी
4) गुड़री
1) कुड़ी बाँचे की कुड़ी ताँबा, पीतल, लोहा, स्टील जैसे धातु से बनाई जाती हैं। कुड़ी अंदर से खोखली, तथा बीच मे चौड़ी तथा नीचे की ओर चौड़ाई कम होती हैं । कुड़ी की उँचाई 9 से 22 इंच तथा मुँह 8 से 9 इंच व्यास का होता है। यह मिट्टी और लकड़ी से भी बनता है।
2) पूड़ी
3) बद्धी
4) गुड़री ये सभी अंग तबले के समान ही होती हैं। इन सभी का विवरण उसी प्रकार लिखा जा सकता है। बाँचे में फर्क यह है, कि तबले में स्याही बीचो बीच होती है, किन्तु इग्गा की स्याही पूड़ी के एक ओर होती हैं। इग्गे में गद्वे नहीं होते हैं। स्याही की एक ओर लव का बडाहिस्सा होता हैं, उसे मैदान कहते हैं, तथा दूसरी ओर वाले लव के छोटे हिस्से को 'लव' कहते हैं। इसके अलावा तबला तथा बायाँ रखने के लिए दो चुट्टे होते हैं। तथा तबला सुर में मिलाने के लिए हथौड़ी का उपयोग किया जाता है। बजाते समय हाथ में पसीना आने पर पावडर का उपयोग किया जाता है।