भारतीय संगीत में ताल और रूप विधान
दूसरा अध्याय- यह अध्याय गीतक पर आधारित है। इसमें गीतक का सामान्य परिचय और गीतकों को संख्या और उनका वर्गीकरण, गांवकों में ताल की प्रधानता, गीतकों का प्रयोग स्थल, गीतकों का नृत्य, वाद्य और अभिनय से सम्बन्ध गांवक का पदांश, गीतक को प्रकृति व उसके भेद, निपुंछ, अनिपुंछ, पद निपुंक, वस्तुनिबद्ध तथा 'अंगकृत्' गोठक वस्तु और अंग, गीतकों के विभिन्न अंग और उनके लक्ष्म तालांग पाद, प्रतिपाद, शीर्षक, संहरण, अन्त, वेणी, प्रवेगी, चतुरस्र, वज्र, शरीर, मात्रा, तालिका, उपवर्तन, मुख, प्रतिमुख गीतांग अथवा वर्षांग, विदारी, एकक, विविध, वृत्त, प्रस्तर पदांग-उपोहन, प्रत्युपोहन, शाखा, प्रतिशाखा, गीतकों के मार्ग, गीतकों के लक्षण-मुद्रक, अपरान्तक, का उल्लेख किया गया है साथ ही उल्लेप्यक, प्रकरी, उत्तर, छन्दक, आसारित, वर्षमान पाणिका, ऋक, गाथा, साम का वर्णन प्राप्त होता है।
तीसरा अध्याय-यह अध्याय प्रबन्ध से सम्बन्धित है। यह भी चार परिच्छेदों में विभक्त है।
परिच्छेद'क' इस परिच्छेद का शीर्षक है- 'प्रबन्ध का विश्लेषण'। इसमें प्रबन्ध की व्युत्पत्ति और विभिन्न अर्थ बताएं हैं तथा प्रबंध की विभिन्न संज्ञाएं भी दी गयी हैं। साथ ही प्रवन्ध और गीत में भेद, प्रबन्ध और गीत का सम्बन्धप्रबन्ध का लक्षण तथा धातु और अंग का विश्लेषण भी किया। गया है। फिर सामगीतों के अंगों से धातुओं का सादृश्य, अवनद्ध वाद्य प्रबन्धों के अंगों का धातुओं से सादृश्य, अंग, प्रबन्ध-जाति, प्रबन्ध-भेद, प्रबन्धों का वर्गीकरण बताया गया है। इसके बाद सालग सूड, मिश्र सूड' विभिन्न तत्वों के आधार पर प्रबन्धों का विश्लेषण, गीत के गुण-दोष, प्रबन्ध इत्यादि का वर्णन किया गया है।
परिच्छेद ख- 'प्रबन्ध-भेदों के लक्षण और प्रबन्धों के स्वरूप में पविर्तन'। इस परिच्छेद के अंतर्गत प्रबन्ध सम्बन्धी ग्रंथों का परिचय, भरत परंपरा के ग्रंथों में प्राप्त प्रबन्ध लक्षण संगीत रत्नाकर, भरतभाष्य, मानसोल्लास, संगीतराज, मध्ययुगीन ग्रंथों में प्राप्त प्रबन्ध लक्षण-संगीत पारिजात, संगीत दामोदर, चतुर्दण्डी-प्रकाशिका, संगीत सूर्योदय, प्रबंध के स्वरूप में ऐतिहासिक मोड़ इत्यादि को बताया गया है।
परिच्छेद ग-'प्रबन्धों के अन्य रूप'। इसमें प्रबंध संज्ञा से रहित गेय रूप- जाति-प्रस्तार, आक्षित्तिका, कपाल-गान, वाद्य प्रबंध, नृत्त प्रबंध इत्यादि का वर्णन किया है। परिच्छेद घ' वर्तमान लक्ष्य में प्रचलित गीतों का विकास और वर्तमान रूप'। इसके अन्तर्गत उत्तर भारतीय, कर्णाटक, : उड़ीसी तीनों का समावेश है, जैसे उत्तर भारतीय में ध्रुपद, ख्याल, तराना, धमार, टप्पा, ठुमरी इत्यादि पारिभाषिक शब्दों का वर्णन किया है। कर्णाटक के कीर्तन, वर्णम्, पदम्, रागमालिका, गीतम् इत्यादि के बारे में बताया है और उडोसो में छन्द, चम्पू, सूड आदि का वर्णन किया है। इसके बाद परिशिष्ट का उल्लेख हुआ है।