पं. अनोखेलाल मिश्र
बनारस घराने के इस श्रेष्ठ प्रतिनिधि तबला वादक का जन्म वाराणसी के एक निर्धन परिवार में सन् 1914 में हुआ। इनके पिता का नाम श्री बुद्ध प्रसाद मिश्र था। माता-पिता का बाल्यकाल में ही देहांत हो जाने के कारण इनकी दादी ने मेहनत-मजदूरी करके उनका पालन-पोषण किया। अतः इनका बचपन मुसीबतों में ही बीता। बालक अनोखेलाल में प्रतिभा, लगन के साथ-साथ अभ्यास के प्रति गहरी रुचि थी। आपने छह वर्ष की अल्प आयु में ही पं. भैरव प्रसाद मिश्र शिक्षा और कठिन' अभ्यास ने अनोखेलाल को अनोखा बना दिया।ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा और कठोर रियाज के फलस्वरूप ही पं. अनोखेलालजी भारतवर्ष के तबला क्षेत्र में अनोखे ही तबला वादक हुए। भारत के प्रायः सभी बड़े नगरों के संगीत सम्मेलनों में तथा आकाशवाणी के केन्द्रों द्वारा उनके तबला वादन के कार्यक्रम प्रसारित होते थे। तंत्रकारों की संगत में वें सिद्धहस्त थे। वैसे मुक्त (सोलो) वादन में भी पारंगत थे। उनका स्वतंत्र तबलावादन बहुत पसन्द किया जाता था। वह शरीर से दुबले-पतले और स्वभाव से अत्यन्त नम्र एवं अल्पभाषी थे।
मिश्रजी स्वतंत्र वादन तथा साथ-संगत दोनों में पारंगत थे। तीनताल का ठेका 'ना धिं धिं ना' और 'धिरधिर' के वादन के लिए वे आज भी याद किये जाते हैं। उनका बाज शुद्ध बनारस घराने का बाज था। उनके तबलावादन की सर्वाधिक विशेषता थी सफाई ।तबले पर स्पष्ट बोल निकालते थे। आकाशवाणी अमेरिका से भी उनके कार्यक्रम प्रसारित किए गए थे।
पं. अनोखेलाल के ज्येष्ठ पुत्र श्री रामजी मिश्र एवं शिव्यों में सर्वश्री स्व. महापुरुष मिश्र, ईश्वर लाल मिश्र, छोटेलाल मित्र एवं काशीनाथ मिश्र का नाम उल्लेखनीय है। शायद ही कोई ऐसा संगीत प्रेमी होगा, जो इस तबला- वादक से अपरिचित हो। अत्यंत सरल स्वभाव वाले इस कलाकार में तनिक भी गर्व नहीं था। मात्र चौबालीस वर्ष को आयु में गेंगरीन नामक रोग से सन् 1958 में उनका निधन वाराणसी में हो गया इससे तबला जगत की अपार क्षति हुई।