तबला संगत
गायन, वादन तथा नृत्य की संगत एवं नियम :
आजकल 'तबला' एक अत्यंत प्रचलित वाद्य है तथा तबला वादक को भी गायक/वादक या नृत्य कलाकार की भाँति अच्छा मान सन्मान रसिक श्रोताओं से प्राप्त होता है। क्योंकि गायन वादन तथा नृत्य की अच्छी रंगतदार प्रस्तुति में तबला वादक की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। तबला के छात्रों को स्वतंत्र तबला बजाने के साथ-साथ इन बातों पर भी विशेष ध्यान रखना चाहिए कि तबला वादन क्षेत्र में तबला संगत का कितना महत्त्वपूर्ण स्थान हैं।
गायक जिस स्वर में गा रहा है, तबला ठीक उसी स्वर पर मिला हुआ होना चाहिए, कभी-कभी बायाँ मिलाने का भी रिवाज हैं। बायाँ भी मिलाकर ऐसा कर लो कि दाएँ के साथ उसकी गूँज बेसुरी न मालूम पड़े। गायक का आलाप ध्यान से सुनना चाहिए । अधिकांश गायक लोग जिस लय में आलाप करते हैं, खयाल भी उसी लय में शुरू करते हैं। इसके बाद तबला वादक को यह देखना चाहिए कि सम किस शब्द पर हैं और सम से कुछ मात्रा पहले से एक टुकड़र लगाकर सम पर मिलना चाहिए। बाद में स्थायी एवं अंतरा में सीधा-सीधा ठेका लगाना चाहिए। गवैया जब तानें लेना शुरू करें, तो तानों के साथ बोल नहीं बजाते। इससे गाने का रंग बिगड़ता है। बाद में अवसर देखकर बोल - तानों के साथ बोलों द्वारा संगत करनी चाहिए, मगर संगत के बोल उसी लय का होना जरूरी हैं, जिस लय की तानें हो। जब गाना समाप्त हो, तब भी एक बोल बजाकर ही समाप्त करना चाहिए।
सितार, सरोद इत्यादि वाद्यों के साथ भी संगत करने का नियम करीब करीब इसी प्रकार का है। फर्क इतना है कि गायन में अधिक बोल नहीं बजाए जाते किंतु स्वर वाद्यों के साथ संगत करने के लिए तबला वादक को उसकी लयकारी के साथ-साथ बजाने के लिए तरह तरह की लयकारियों के बोल होने जरूरी हैं। झाले का साथ करने के लिए ठेके की तैयारी भी वांछनीय हैं। ठेके को तरह-तरह से लय में बाँटने का भी अभ्यास होना चाहिए । तार वाद्य की संगत दो प्रकार से होती हैं। पहली सितार या सरोद वादक अपनी गत के साथ किसी भी लयकारी को बजाना शुरू करें तो तबला भी उसके साथशुरू हो जाता है। और विभिन्न लयकारियों में उसी के साथ सम पर आता हैं। दूसरा प्रकार यह हैं कि तार वाद्य बजाने वाले को गत की स्थायी अंतरा बजाने के बाद जो भी लयकारी चले, उसे सुनकर दो बातों का खयाल रखना चाहिए।
१) किस मात्रा से उठकर कितनी आवृत्ति बजाकर सम पर आया हैं।
२) किन-किन लयकारियों को सम तक बजाया है। ठीक उसी प्रकार से तबला वादक को भी उसी मात्रा से उठकर और उन्ही लयकारियों को बजाकर सम पर मिलना चाहिए।
नृत्य की संगति के लिए नृत्यकार जब नृत्य के लिए खड़ा हो, तब एक टुकड़ा बजाकर लहरा के साथ सम पर मिलना चाहिए और बाद में नृत्यकार जिन परन-टुकड़ों को मुँह से पढ़े उन्हें ध्यानपूर्वक सुने तथा बाद में नृत्य के उन्हीं टुकड़ों या परनों को बजाना चाहिए। अगर वे टुकड़े-परन याद न हो तो उन्ही लयकारियों के तथा उतनी ही आवृत्ति के दूसरे टुकड़े परन बजाए जा सकते हैं।