स्वर प्रकरण
इस ग्रंथ के स्वर प्रकरण में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का निरूपण हुआ है जो निम्न प्रकार हैं- 1. शुद्ध गांधार जब गांधारत्व को रहता है तो द्विश्श्रुतिक रहता है, जैसे- मुखारी राग में। वही जब ऋषभ हो जाता है तो पंचश्रुतिक रे कहलाता है ।
2. शुद्ध निषाद जब निषाद बन के रहता है तो द्विश्रुतिक रहता है, जैसे- मुखारी राग में। वहीं जब धैवत बनकर प्रयुक्त होता है तो पंचश्रुतिक धैवत हो जाता है, जैसे- शंकराभरण में।इस प्रकार शुद्ध गांधार व शुद्ध निषाद द्विरूपी है।
3. जब साधारण गांधार शुद्ध ऋषभ से युक्त होता है तो
लिश्रुतिक होता है, जैसे- भूपाल राग में। जब उसी साधारण गांधार का पंचश्रुतिक ऋषभ से अंतराल होता है तो वह एकश्रुतिक हो जाता है और इसी की ऋषभ संज्ञा होने पर
षट्श्रुतिक होता है।
4. कैशिक निषाद का शुद्ध धैवत के साथ संयोग होने पर वह त्रिश्श्रुतित्व प्राप्त करता है। उसी का जब पंचश्रुति ध से अंतराल होता है तो वह एकश्रुतिक होता है और धैवत होने पर वह षट्श्रुतिक होता है।
इस प्रकार साधारण गांधार और कैशिक निषाद दोनों त्रिरूपी स्वर हैं।
5. अंतर गांधार का संयोग शुद्ध ऋषभ के साथ होने पर वह पंचश्रुतिक होता है और उसी का प्रयोग पंचश्रुतिक रे के साथ होने पर वह त्रिश्श्रुतिक होता है। वहीं जब पट्श्रुतिक रे के साथ आता है तो द्विश्रुतिक होता है।
6. काकली निषाद शुद्ध ऋषभ के साथ संयुक्त होने पर
पंचश्रुतिक होता है और वही जब पंचश्रुतिक धैवत के साथ प्रयुक्त होने पर वह द्विश्रुतिक होता है।
7. जब शुद्ध मध्यम की संगति शुद्ध गांधार के साथ होती है तब वह चतुः श्रुतिक होता है और साधारण गांधार के साथ संयुक्त होने पर वह त्रिश्रुतिक होता है तथा अंतरगांधार के साथ युक्त होने पर एकश्रुतिक होता है।
8. पड्ज जब शुद्ध निषाद के साथ होता है तो वह चतुः श्रुतिक होता है और वही जब कैशिक निषाद के संयोग में आता है तो त्रिश्रुतिक होता है और काकली निषाद की संगति में आने पर एकश्रुतिक होता है।इस प्रकार शुद्ध मध्यम व पड्ज भी त्रिरूपी हुए।
9. शुद्ध गांधार के साथ वराली मध्यम सात श्रुतियों कास्वर होता है, वहीं साधारण गांधार के साथ प्रयुक्त होने पर षट्श्रुतिक कहलाता है और अंतरगांधार के साथ प्रयुक्त होने पर चतुः श्रुतिक होता है। इसी प्रकार बराली मध्यम भी लिरूपी है।
10. पंचम, शुद्ध मध्यम की संगति में आने पर चतुः श्रुतिक और वराली मध्यम की संगति में आने पर एकश्रुतिक होता है। इस प्रकार पंचम द्विरूपी स्वर है। उक्त विवेचना का सार यह है कि शुद्ध तिरूपी च शुद्ध धैवत एकरूपी, शुद्ध ग, शुद्ध नि तथा पंचम द्विरूपी और साधारण गांधार, कैशिक नि, अंतरगांधार, काकली निषाद, शुद्ध मध्यम व वराली मध्यम तथा षड्ज त्रिरूपी स्वर है।