छत्रपति सिंह जी
छत्रपति सिंह जी का जन्म मध्य प्रदेश स्थित विजना के राज परिवार में सन १९१९ में हुआ था । इनके पितामह राजा मुकुंद सिंह एवं पिता राजा हिम्मत सिंह संगीत के अनुरागी और संरक्षक थे । इस राज दरबार में संगीतज्ञों का खूब मान- सम्मान होता था, अतः हर विधा के श्रेष्ठ कलाकारों का आना-जाना वहां लगा रहता था। इस संगीतमय वातावरण का छत्रपति सिंह जी पर अपेक्षित प्रभाव पड़ा और उनकी रूचि पखवाज सीखने के प्रति जागृत हो उठी। इन्होंने पखवाज वादन की विधिवत शिक्षा कोदऊ सिंह महाराज के शिष्य पं. मदन मोहन के शिष्य स्वामी रामदासजी से प्राप्त की थी। उच्चस्तरीय शिक्षा, कठिन साधना, अनवरत अभ्यास एवं मौलिक चिंतन ने राजा छत्रपति सिंह को जैसे पखवाज का भी राजा सिद्ध कर दिया। अपने समकालीन पखवाज वादकों द्वारा इन्हें काफी आदर और सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था । देश-विदेश के प्रतिष्ठित मंचों पर स्वतंत्र वादन और संगति दोनों के लिए विख्यात रहे छत्रपति सिंह ने अपने समय के सभी वरिष्ठ गायकों, वादकों के साथ संगति करके अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था। अपनी लम्बी-लम्बी परनों, कठिन तिहाइयों, चमत्कृत करती लयकारियों और बोलों के सुस्पष्ट, भावपूर्ण निकास के लिए प्रसिद्ध रहे राजा छत्रपति सिंह को केंद्रिय संगीत नाटक अकादमी ने १९९१ में अकादमी सम्मान से सम्मानित किया था। इसके अलावा १९५१ में संगीत मार्तंड प. ओंकारनाथ ठाकुर द्वारा इन्हें प्रोफेसर ऑफ पखवाज की उपाधि से सम्मानित किया गया था । १९५४ में ऑल इंडिया म्युजिककॉन्फेरेन्स कोलकाता में इन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की रत्न सदस्यता एवं सुरसिंगार संसद मुंबई द्वारा ताल विलास की उपाधि से भी इन्हें सम्मानित किया गया था। इनके शिष्यों में अखिलेश गुंदेचा, चित्रांगदा आगले, प्रवीण आर्य, सुंदर लाल तथा अनीश कुमार सहित कई और भी नाम हैं।
इन्होंने चंद्र चूडामणि (१९ मात्रा), सूर्यमणि (१३ मात्रा), धमार सादरा ताल (२४ मात्रा), सादरा ताल (२२ मात्रा), पंचानन ताल (१९ मात्रा), सादरांक ताल उर्फ शक्तिघर (१९ मात्रा) चतुरानन ताल (१५ मात्रा) एवं राजीव गांधी की याद में कुमुद प्रभा ताल (२० मात्रा) आदि तालों की रचना की थी। इनका निधन १९९८ में विजना में हुआ।