गुप्तकाल, हर्षवर्धन काल और राजपूत काल में संगीत
गुप्त काल में संगीत
• गुप्त काल में संगीत की आश्चर्यजनक उन्नति हुई। उस समय के संगीतज्ञों को उनके नैतिक चरित्र से परखा जाता था। कहते हैं कि सितार की उत्पत्ति गुप्तकाल में ही हुई। राग गायन का आरम्भ भी गुप्तकाल की देन समझा जाता है। सभी राजा संगीत प्रेमी थे। अतः इस काल में गायन, वादन और नृत्य में तीनों कलाएँ उन्नति की चरम सीमा को छू गई थीं।
• इस काल में लोक संगीत का भी विकास हुआ। गुप्त राजाओं ने संगीत कला को स्वयं भी अपनाया और प्रचार प्रसार में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।सुप्रसिद्ध कवि एवं नाटककार कवि कालिदास इसी युग में हुए। वे सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में ही रहते थे और उन्होने भारतीय संगीत को नवीन दिशा दी। भास्तीय संगीत के विकास की दृष्टि से गुप्तकाल यथार्थतः उत्कर्ष का प्रतीक है। इस काल में संगीत साहित्य की विशेष उन्नति हुई। गुप्त काल को भारतीय संगीत का स्वर्ण युग कहा जाता है।
हर्षवर्धन के युग का संगीत
• हर्षवर्धन 606 ई. में राज सिंहासन पर असीन हुआ था वह भी संगीत प्रेमी था। कला और साहित्य के प्रति उसकी विशेष रुचि थी। उसके दरबार में अनेक संगीतज्ञ एवं विद्वान् रहते थे। हर्ष का संगीत ज्ञान अच्छा था, वह गाता भी अच्छा था। महाकवि बाण भट्टु उसके दरबारी कवि थे, उन्होंने हर्ष चरित्र नामक ग्रन्थ की रचना की। एक विशेषता इस युग की यह रही कि संगीत आयोजनों के साथ-साथ नाटकशालाएँ भी कई जगह स्थापित हुई। इस काल में नाटकों का प्रचलन था। वाद्यों में वीणा का विशेष स्थान था। परिवादिनी, विपंची, वल्लकी, घोषावती इत्यादि वीणा के प्रकार प्रचलित थे। हर्ष के काल में महान् संगीतज्ञ मतंग हुए, जिन्होंने बृहद्देशीय नामक ग्रन्थ लिखा। उस युग में स्वर निश्चित करने के लिए दो स्वरवाद्य थे-वंशी एवं वीणा।राजपूत काल में संगीत
• राजपूत अपने को क्षत्रिय के वंशज मानते थे। राजपूत राज्य में राजा संगीत प्रेमी तो थे, लेकिन वे लड़ने-झगड़ने में इतने व्यस्त रहे कि संगीत के विकास में योगदान नही दे सके। राज दरबारों में संगीतज्ञों को आश्रय मिला, जिससे वे अपनी कला में व्यस्त रहे। मुस्लिम आक्रमणों से संगीत बहुत प्रभावित हुआ और जन साधारण से दूर होकर केवल कुछ संगीतज्ञों तक ही सीमित हो गया। भारत अनेक छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित हो गया था। संगीत के क्षेत्र में जो घराने का क्रम चला, वह राजपूत काल की ही देन है। इस काल में संगीतकार अपनी कला को गुप्त रखते थे। अतः अनेक वर्गों में विभक्त हो जाने के कारण संगीत के विकास में भी पृथकता आ गई। नाटककार भाव भूति इस काल में हुए, इन्होंने महावीरचरित्र, मालती, माधव इत्यादि संगीतमय नाटकों की रचना की। जयदेव की गीत गोविन्द भी इसी समय की रचना है। राजपूत काल में अधिकाशतः संगीत राजाओं के सरक्षण में आगे बढ़ा। अतः वह जन सामान्य के जीवन से विलग होता गया। इस युग की महत्त्वपूर्ण घटना है कि - भारतीय संगीत उत्तरी हिन्दुस्तानी व कर्नाटकी पद्धतियों में विभाजित हो गया।