पाणिनी तथा जैन युग में संगीत
पाणिनि युग में संगीत
• पाणिनि का समय ईसा से 800 वर्ष पूर्व माना जाता है। पाणिनि द्वारा रचित ग्रन्थ 'अष्टाध्यायी' इतिहास की अमर कृति है। यह ग्रन्थ संस्कृत व्याकरण पर लिखा गया है।
• यह वह समय था, जब आर्यों का सामाजिक तथा धार्मिक जीवन जटिल हो गया था।
इस ग्रन्थ में मन्त्रों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है। इस समय संगीत पूर्णतः ब्राह्मणों के अधिकार में था और ये ब्राह्मण शिक्षित तथा संगीत के ज्ञाता थे एवं संस्कृत के विद्वान् भी थे। यज्ञ व हवन इत्यादि अवसर पर मधुर स्वरों मे मन्त्रों का पाठ होता था। ब्राह्मण ही संगीत की शिक्षा भी देते थे और इसी कारण जन-साधारण में संगीत प्रचलित था। अनेक प्रकार के संगीत उत्सव उधान क्रीडा, जल क्रीडा पुष्प चयन आदि समाज में प्रचलित थे। वाद्यों में विशेषकर वीणा और वंशी का प्रचलन था, परन्तु वाद्यों की अपेक्षा कण्ठसंगीत इस काल में अधिक प्रचलित था। पाणिनि युग में हमें संगीत स्वरों तथा गन्धार ग्राम का वर्णन मिलता है।
शास्त्रीय संगीत का प्रचलन इस युग में अधिक था। साम गान के स्वरों का विभाजन उदात्त, अनुदात्त व स्वरित इन विद्याओं में किया जाता था। वाद्य वृन्द के लिए 'तुर्य' संज्ञा थी और वीणा इस वाद्य वृन्द का आवश्यक अंग रहती थी। पाणिनि काल में संगीत उच्च शिखर पर था ।
जैन युग में संगीत
• संगीत की नींव महावीर स्वामी (600 वर्ष ई. पू) के सिद्धान्तों सत्यता, पावनता सुन्दरता, अहिंसा और अस्तेय पर रखी गई। इस प्रकार से संगीत के धरातल को पुनः ऊँचा बनाया गया। जैन काल में ब्राह्मणों के महत्त्व को कम करने तथा वर्णाश्रमों के बन्धनों को तोड़ने का प्रयत्न किया जाने लगा। फलस्वरूप संगीत पर ब्राह्मणों का जो अधिकार था, वह अब सर्वसाधारण के हाथों में पहुँच गया।
• इस युग में वीणा वाद्य का प्रचार प्रगतिपूर्ण था। वीणा के द्वारा धार्मिक सिद्धान्तों * का प्रचार किया गया था। संगीत प्रतियोगिताओं का आयोजन भी इस काल में होता था। संगीत साधना का विषय बन गया था। अनेक नई गायन शैलियाँ विकसित हुई, वाद्यों में विशेषकर मृदंग वीणा तथा दुन्दुभि का प्रयोग होने लगा। नृत्य को भी सामाजिक मान्यता प्राप्त थी। राज दरबारों में आयोजन होता था। समाज में एक सूत्रता की भावना पनप रही थी। संगीत को आत्म विकास का एक प्रबल माध्यम माना जाने लगा।