डॉ. प्रेमलता शर्मा
स्व. डा. प्रेमलता शर्माजी का जन्म बैशाख शुक्ल नवमी, सं. 1984 वि. (10 मई, 1927 ई.) नकोदर, जिला जालंधर (पंजाब) में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई थी। इन्होंने बी.ए. दिल्ली विश्वविद्यालय से किया और ऍग.ए. हिन्दी और संस्कृत से किया। पीऍच.डी. संस्कृत से की और शास्त्राचार्य साहित्य से करके संगीतालंकार गायन से किया। इन्होंने सभी शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पूर्ण की। प्रेमलताजी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संगीत संकाय में संगीतशास्त्र के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहीं। इन्होंने तीन वर्षों तक इन्द्रिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ (म.प्र.) में वाइस चांसलर (उपकुलपति) का कार्यभार भी संभाला। संगीत में योगदान - इन्होंने कई पुस्तकों का प्रकाशन, संपादन, अनुवाद भी किया जिसका विवरण इस प्रकार है—प्रकाशन : पाठ संशोधनात्मक सम्पादन - रसविलास; 52; 'संगीतराज', 62; 'सहसरस', 62; एक लिंगमाघत्मयम्, 76; संपादन -'नादरूप'; 60-61; 'चित्रकाव्य-कौतुकम्'; 65;' ध्रुपदवार्षिकी', 86-87 तथा अनेक सन्त वाङ्मय (संस्कृत एवं हिन्दी);
अनुवाद - (बंगला से): 'जपसूत्रम्'; 66; 'अमरवाणी'; 68; 'साधु दर्शन व सत्प्रसंग' (भागर) 69 संस्कृत नाट्य-प्रयोग - भरतनाट्यशास्त्र के आधार पर पूर्वरंग का पुनर्निर्माण; तदंगभूत ध्रुवा, निर्गीत, गीतक आदि का पुनरुद्धार; अनेकों संस्कृत नाट्य प्रस्तुतियों का निर्देशन इनके द्वारा किया गया है। इन्होंने 'रस-सिद्धान्त मूल, शाखा, पल्लव और पतझड़' नाम से एक पुस्तक लिखी है जोकि संगीत में रस की दृष्टि से बहुत ही महत्व की है। इस पुस्तक में रस से सम्बन्धित सभी बातों का समावेश किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में अपने व्याख्यानों में रस-सम्बन्धी चिन्तन के उत्स उपनिषद् नें प्रतिपादित 'आनन्द' और 'रस' के प्रसंग को उठाकर इन दोनों का पंचमहाभूतों में से क्रमशः आकाश और जल के साथ सूक्ष्म सादृश्य-सम्बन्ध दिखाया गया है। इसी प्रसंग में ऐन्द्रिय स्तर पर 'रसना-व्यापार' की विलक्षणता की चर्चा भी की गई है।
सामान्य रूप से रस-सिद्धान्त का परिचय साहित्य (श्रव्य काव्य अथवा दृश्य काव्य के पाठ्य अंश मात्र) के संदर्भ में ही होता रहा है, किन्तु 'नाट्य' (दृश्य काव्य का प्रयोग), चित्र, स्थापत्य, संगीत में यह सिद्धान्त किस प्रकार व्यापक भूमिका को प्राप्त हुआ है; इसका एकत्र दर्शन इसी पुस्तक में प्राप्त होता है। प्रेमलता शर्माजी ने विदेशों में भी कार्य किया। इन्होंने. मॉस्को कंजर्वेटायर के शताब्दी समारोह में, 66; किया। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में (1) अध्यापन-रंचिस्टर (न्यूयार्क), शार्लेट (नार्थ केरोलीना) में, 70, 78; (2) निबंध वाचन बर्कले में, 77 में किया। मारीशस में संगीत-परीक्षण सन् 1981 में किया। मास्को की विचारगोष्ठी में भारतीय दल का नेतृत्व 87 में किया। वास्तव में विदुषी डॉ. प्रेमलता शर्माजी संगीत-क्षेत्र मेंअपने योगदान के लिए हमेशा अविस्मरणीय रहेंगी। इनके निधन से संगीत-क्षेत्र को बहुत बड़ा आघात पहुंचा है।