रावसाहेब कृष्णजी देवल
इनका पूरा नाम रावराहब कृष्णाजी देवल था। इनका जन्म 6 मई, 1846 को दक्षिण महाराष्ट्र के सांगला नामक स्थान में हुआ था। जब ये महाराष्ट्र के रत्नागिरि डिप्टी कलेक्टर पद पर नियुक्त थे, तब इनकी नयी संगीत के श्रुतियों से सम्बन्धित सिद्धांत को जानने की इच्छा हुई। इसके पूर्व न तो उन्हें संस्कृत विषय का ज्ञान था और न ही संगीत-विषय की शिक्षा मिली थी। पं. भातखण्डेजी की सहायता से इन्होंने संगीत सम्बन्धी संस्कृत में लिखे गये ग्रंथों का अध्ययन किया और अपने कार्य के प्रसिद्ध गायकों के साथ मिलकर श्रुति संबंधी कुछ नवीन प्रयोग किए। उसके पश्चात् उन्होंने सन् 1910 ई. में एक निबंध लिखा जिसका विषय "Hindu Musical Scale & 22 Surhits" था। यह उल्लेख Times of India में प्रकाशित हुआ। उनके इस लेख से सतारा जिले के | ड्रिस्ट्रिक और सेशन्स जज Mr. E. Clements बहुत प्रभावितहुए। कुछ दिनों के पश्चात् इन दोनों व्यक्तियों ने मिलकर एक संस्था की स्थापना की जिसका नाम "Fill Harmonic Socity 5 of India" रखा। उनकी इस संस्था ने हिन्दुस्तानी और कर्नाटक 7 संगीत के कई ग्रन्थों का प्रकाशन किया।
देवलजी की प्रशंसा में Mr. Clements ने अपने ग्रंथ में अनेक स्थलों पर कहा है कि देवल ने एक महत्वपूर्ण प्रयोग किया था, जिसमें स्वरों के नाद को एक गीत रूप में निर्माण करने वाला एक डायकार्ड तैयार किया। ध्वनि के कारण कम्पित होने वाले एक बोर्ड पर दो समान लम्बाई की तार लगाकर उसमें से एक के साथ स्वरों की कंपन संख्या दिखाने वाला Scale लगाया, एवं विस्तार की लम्बाई के बराबर एक सिरे से दूसरे सिरे तक सरकने वाली लकड़ी की एक चूड़ी को लगाया। उनकी यह योजना थी कि दोनों तारों को एक ही स्वर में, गायक के षड्ज स्वर में मिलाया जाए, तत्पश्चात् उसकी आवाज के उतार चढ़ाव के प्रत्येक स्वर पर चूड़ी को सरकाकर स्थिर किया जाए। इस तरह किसी भी स्वर की षड्ज से हुए कंपन संख्या आदि को नापा जा सकता है। इसी सिद्धान्त के आधार पर उन्होंने एक हारमोनियम का निर्माण किया। उनके इस योगदान से सभी भारतीय संगीतज्ञ अत्यधिक प्रभावित हुए। इनका देहावसान 16 मार्च, 1931 ई. में हुआ।