संगीत दर्पण

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संगीत-दर्पण

संगीत दर्पण


 पं. दामोदरकृत संगीत दर्पण


पं. दामोदर मुगल बादशाह जहांगीर के समय में हुए थे। उसी समय इन्होंने सन् 1625 ई. में 'संगीत दर्पण' नामक ग्रंथ की रचना की। उनके पिता का नाम पं. श्रीधर था।  इस ग्रंथ का फारसी, हिन्दी तथा गुजराती में अनुवाद हो चुका है  चुकास्वराध्याय में नादोत्पत्ति, वादी, संवादी भेद, रस, श्रुति, मूर्च्छनायें तथा उनके भेद, कूटतान, खंडमेरु, नष्टोदिष्ट प्रकरण, साधारण प्रकरण, वर्ण (आरोही, अवरोही, संचारी) अंश, ग्रह, जाति लक्षण, अलंकार आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है।


रागाध्याय में राग की परिभाषा, रागांग, भाषांग, क्रियांग और उपांग को संक्षेप में समझाकर मतंग के मतानुसार रागों के तीन भेद (शुद्ध, छायालग और संकीर्ण) बताकर रत्नाकर से. 20 रागों के नाम उद्धृत कर दिए हैं और शिवमत के राग व रागिनी, राग समय, राग ध्यान, ऋतु, हनुमत मत से राग- रागिनियां, रागार्णव मत, भैरवी, बंगाली, वराटी, सैंधवी, रामकिरी, गौरी, हिन्दोली, खम्बावती, तोड़ी, मालव कौशिक, बिलावली, ललित, दीपक, कामोदी, मालवी, आसावरी, मेघ, देशी, देशकारी, भूपाली, धनाश्री, गुर्जरी, टंका, कल्याण नाट, सारंग नट, देवगिरी, सौरटी, त्रिवणा, पहाड़ी पंचम रागों के ग्रह- अंश, वर्ज आदि स्वरों का वर्णन तथा ध्यान दिए हैं और अंत में शंकराभरण, बड़हंस, विभास, रेवा, कुड़ाई और आभारी रागों का केवल वर्णन है। इनके ध्यान नहीं दिए हैं।


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