तबला वादन में बाज-विशेषता और तुलना
वर्तमान तबले के घरानोंका अगर ठीक से अध्ययन किया जाये तो हमे यह दिखाई देता है, कि प्रत्येक घरानें के स्वतंत्र वैशिष्ट होते हैं। उदाहरणार्थ, तबलेपर हाथ रखने की विधि तबलेपर उँगलियों से विशेष क्रियाओं द्वारा, विशिष्ट स्थानपर आघात करके खास नाद उत्पन्न करने का कौशल और रीतियाँ तथा बायेपर विशिष्ट पद्धती से उँगलियों कि सहाय्यता से विविध नाद निर्माण करने की पद्धतियाँ। उपर्युक्त लक्षणों की ओर देखनेपर हमे ज्ञात होगा की यह सब शारीरिक क्रियाओं के लक्षण है, जिन्हें "बाज" या "वादनशैली" कहकर संबोधित किया जा सकता है। जब हम घराने कि रचना के प्रस्तुतीकरण के संबध में बात करते हैं, तब हमारा मतलब उक्त घरानों के बाज से ही होता है। उदा. जब हम दिल्ली घराना कहते है, तब दिल्ली बाज की संकल्पना उसमें अंतर्भूत होती है। वादन वैशिष्ट्यों के नजर से देखा जाये तो तबले के प्रमुख दो बाज बताये गये है। बंद बाज और खुला बाज। बंद बाज का स्वीकार दिल्ली घराने के तबलावादकों ने किया तथा खुले बाज का स्वीकार लखनौ पूरब घरानों के तबलावादको ने किया। तबला वादन के विद्यार्थियों को प्रत्येक घराने की वादनशैलीका याने उक्त घरानों के विशिष्ट निकासों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके उस शास्त्रशुद्ध निकास को अपने रियाज में लाना आवश्यक है। संक्षेप में बाज अथवा वादन शैलीका कानों और आँखों के माध्यम से आकलन किया जा सकता है, परंतु वादन के वैचारिक सूत्र, अनुशासन और भूमिका की पहचान सहेतुक प्रयत्नों से ही बुद्धी को हुआ करती हैं।
बंद बाज -
हाथों को न उठाते हुए सिर्फ उंगलियों से बजता है उसे बंद बाज कहते हैं। इस बाज में तबला तथा बायाँ से निर्माण होनेवाली गूँज मर्यादित रहती है। हाथों को न उठाते हुए वादन पद्धती के कारण बजाने की गति ज्यादा होती है।
खुला बाज -
इस बा में वादन करते समय हाथ उठाकर बजाया जाता है इसलिए इस बाज में नादों की गूँज जादा होती है। इसी वजह से इसे खुला बाज कहते हैं। इस बाजपर पखावज का प्रभाव जादा होता है। तबले के सभी घरानों का उदय इन्ही दो बाजों के जरिये हुआ है।