पं. भातखंडे एवं पं. पलुस्कर ताललिपि
प्राचीन काल से संगीत की विद्या यह गुरुमुखी विद्या है, ऐसे मानते थे। मतलब गुरु के सामने बैठकर तबलेपर बजनेवाले बोल, उनके विकास तथा वजन और संबंधित रचनाओं के व्याकरण इत्यादी को सिखा जाता था। लेकिन कालपरत्वे इन रचनाओं को उनके वजनसहीत लिखने की आवश्यकता महसूस होने लगी। परिणाम स्वरूप तबले की अलग-अलग ताल लिपिओं को प्रचार में लाया गया ।
वर्तमान काल में हिंदुस्थानी संगीत पद्धति में दो ताललिपियों प्रचलित है। जिन्हें भातखंडे पद्धति और विष्णू दिगंबर पद्धति कहते हैं। पं. भातखंडे पद्धति की निर्मिती पं. विष्णू नारायण भातखंडे ने की। तथा पं. पलुस्कर ताललिपि पद्धतिके निर्मितीका श्रेव पं. विष्णु दिगंबर पलुस्करजी इनके पास जाता है। अब इन दोनो ताललिपि पद्धतीयों की वैशिष्ट्यों को जानने की कोशिश करते हैं।
पं. भातखंडे पद्धति -
इस पद्धति में ताल के विविध अंगो के चिन्ह निर्धारीत किये गये हैं। वे ऐसे है।
सम - अक्षर के निचे 'X' यह चिन्ह लिखते हैं।
खाली (काल) - अक्षर के निचे '0' ये चिन्ह लिखते हैं।
ताली - अक्षर के निचे ताली का अनुक्रमांक लिखते हैं।
खंड - प्रत्येक विभाग के भाग '।' ये चिन्ह लिखते है।
अगर मात्रा में एक ही अक्षर लिखा हैं, तो कोई चिन्ह नहीं है। अगर एक मात्रा में एक से ज्यादा अनेक अक्षर लिखते हैं, तो उन अक्षरों को इकठ्ठा लिखकर उनके निचे अर्ध गोल यह चिन्ह लिखते है।
पं. पलुस्कर ताललीपी
सम अक्षर के निचे '१' (एक) अंक लिखते हैं।
खाली (काल) अक्षर के निचे '+' चिन्ह लिखते है।
ताली जिस मात्रा पर हो उसकी संख्या अक्षर के नीचे लिखते है।
विभाग कोई चिन्ह नहीं हैं। लेकिन ताल के अंत में '।' यह चिन्ह लिखते हैं।
इन दोनों ताललिपी पध्दति तबले के अभ्यासको के लिए बहुत उपयुक्त है। लेकिन ये दोनो ताललिपी पद्धतियों में जो त्रुटी है, वो इस प्रकार है।
पं. भातखंडे पध्दति में तालांगों की जानकारी मिलती हैं। उदा. ताली, खाली, सम इत्यादी. परंतु, जब एक मात्रा में अनेक अक्षर लिखते हैं, तब उनके लिए, एकही चिन्ह निर्धारीत किया है, जिसकी वजहसे, अक्षरों के मात्रा विभाजन का ज्ञान मिलता नहीं।
पं. पलुस्कर ताललिपी पध्दति में इन अक्षरों का मात्रा विभाजन जैसे की है, १/२, १/३, १/४, १/६, १/८, अलग-अलग चिन्हों से दिखाया गया है। परंतु १/५, १/७ का कोई चिन्ह दिखाया नहीं गया है।
पं. भातखंडे ताललिपी पध्दति लिखने के लिए और समझने के लिए आसान है। उसी की वजह से, तबला के अभ्यासक उसे जादा पसंद करते हैं।
पं. पलुस्कर ताललिपी पध्दति पं. भातखंडे ताललिपी पध्दतिसे तुलना में अधिकतम क्लिष्ट है। परिणाम स्वरुप इस ताललिपी पध्दति में तबले के क्लिष्ट रचनाओं को लिखना मुश्किल होता है।