लय और लयकारी
लय संकल्पना समझाने से हमे यह पता चला कि मात्राओं में रहनेवाले समान अंतर के कारण लय का निर्माण होता है। इसी समान अवकाश के कारण संगीत की रचनाओं मे स्थिरता आती है। प्रकृति का ऐसा नियम है कि जब कोई भी वस्तु या क्रिया एकजगह स्थिर होती है। तो कुछ समय बाद वह उबानेवाली हो जाती है, मानो निर्जीव मी बन जाती है। स्थिर लय संगीत को आधार जरूर देती है, लेकिन उस की यह स्थिरता संगीत की रचनाओं को उबाऊ बना देती है। इस दोष को मिटाने के लिये चतुर कलाकार ऐसी स्थिर लय में ही कुछ कारीगरी कर के उस में चैतन्य निर्माण करता है। स्थिर लय के साथ की गयी इस कारीगरी को ही लयकारी कहते हैं। कार शब्द का अर्थ है करना, अर्थात् लयकारी का अर्थ है लय के साथ काम करना। लय के साथ यह जो कारीगरी को जाती है वह मूल लय को कायम रखकर ही की जाती है।
लयकारी की व्याख्या :-
जब मूल लय के संदर्भ में अन्य लयों का निर्माण कर के इन दो लयों में निश्चित गुणोत्तर या अनुपात प्रस्थापित होता है, तब ऐसी अनुपातयुक्त लयों के अविष्कार को लयकारी कहते हैं।
लयकारी के कुछ प्रकार -
अ) सरल लयकारी जब ताल की एक मात्रा में 2, 3,4 ऐसी पूर्ण मात्रासंख्या ले कर लयकारी की जाती है तब उसे सरल लयकारी कहते हैं। सरल लयकारी के प्रकार निम्नानुसार है
१. दुगुन एक मात्रा में दो मात्रा ले कर बननेवाली लयकारी २. तिगुन एक मात्रा में तीन मात्रा लेकर बननेवाली लयकारी
३. चौगुन एक मात्रा में चार मात्रा ले कर बननेवाली लयकारी इत्यादी
ब) वक्र लयकारी जब ताल की एक मात्रा में 1/3, 2/3, 3/4, 4/3,4/5, 4/7 इ. ऐसी अपूर्ण मात्राएं ले कर लयकारी की जाती है तब उसे वक्र लयकारी कहते हैं। वक्र लगकारी के कुछ उदाहरण निम्नानुसार हैं ।
1.सवागुन जब एक मात्रा में सवा मात्रा या 4 मात्राओं में 5 मात्रा की लयकारी की आती है तब उसे सवागुन कहते हैं और उस लय को कुआड की लयकारी काले
2. डेढ़गुन जब एक मात्रा में डेढ़ मात्रा या 2 मात्राओं में 3 मात्रा की लयकारी की जाती है तब उसे डेढ़गुन कहते हैं और उस लय को आड़ की लयकारी कहते हैं।पौने दो गुन - जब एक मात्रा मे पौने दो मात्रा या 4 मात्राओं में 7 मात्रा की लयकारी की जाती है, तब उसे पौने दो गुन कहते हैं, और उस लय को बिआइ की लयकारी कहते हैं। इसी प्रकार से नवमगुण, एकादशगुण आदि वक्र लयकारिया संगीत में प्रयोग की जाती हैं।