संगीत और स्वास्थ्य
भाग २
मन की शांति स्वास्थ्य का जड़ है।' संत तुकाराम महाराज कहते हैं-
मन करा रे प्रसन्न । सर्व सिद्धिचे कारण ।।
मोक्ष अथवा बंधन । सुख समाधान इच्छा ते।।
मन गुरु आणि शिष्य । करी आपुलेची दास्य ।।
प्रसन्न आप आपणास । गती अथवा अधोगती ।।
साधक वाचक पंडित । श्रोते वक्ते ऐका मात ।।
नाही नाही आन दैवत । तुका म्हणे दुसरे ।।
मानसिक रोग भी शारीरिक रोगों के मूल में है। कई डॉक्टरों की राय है कि कैंसर और मधुमेह जैसी बड़ी बीमारियों की जड़ में मानसिक तनाव है। क्रोध, लोभ, मोह, अत्यधिक अहंकार और वासना से मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। जाननेवालों का कहना है की ये इंसान के दुश्मन है। अच्छा और सुखदायक संगीत सुनने से ये शत्रु अपनी दुश्मनी भूल जाते हैं और शांत हो जाते हैं। जब इन शत्रुओं को चुप करा दिया जाता है, तो शांति का अनुभव होता है। तो अच्छा संगीत क्या है? सबसे अच्छा गाना कौन सा है?
वह गीत जो भगवान को भूले,
उस गीत को नजरंदाज करो ||
जो विकार पैदा करे
उस गीत को अस्वीकार करो ॥
एक ऐसा गाना जो उदास कर दे
उस गानेको भूल जाओ ।।
जो दर्द पहुँचाए उस गाने को दूर रखो ॥
गीत जो आनंद दे
उस गाने को अपने दिल से लगावो ||
वह गीत जो खुशी दे
उस गीत को गले लगावो ॥
नई ऊर्जा देने वाला गीत आप हमेशा गाते रहो ॥
ऐसे कई गाने है जो हमें दुखी करते हैं। कुछ गाने हमारे मन में विकार पैदा करते हैं। कुछ गाने ध्वनि प्रदूषण भी पैदा करते हैं। हमें इन गानों को सुनने से बचना चाहिए। इन गानों से आपकी मेंटल हेल्थ खराब होने की संभावना है।भारतीय शास्त्रीय संगीत या राग संगीत वर्तमान में पूरी दुनिया में मानव स्वास्थ्य के लिए आदर्श माना जाता है। किसी भी संगीत में 7 मुख्य शुद्ध स्वर (सा, रे, ग, म, प, ध, नि) और कुल शुद्ध विकृत मिलाकर 12 स्वर होते हैं। योग शास्त्र के अनुसार हमारे शरीर में भी 7 ऊर्जा केंद्र होते हैं। इन्हें सात चक्र कहाँ जाता है। इनमें से प्रत्येक चक्र के लिए संगीत में एक स्वर की योजना बनाई गई है। ये सात चक्र (सहस्त्रार, अजना, विशुद्ध. अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मूलाधार), पंचप्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान) और तीन संगीत और स्वास्थ्य के बीच संबंध जोड़ना सभी के लिए वांछनीय है। संगीत हर घर में सुना जाना चाहिए। सभी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। सुरों की दुनिया में रंगा व्यक्ति हमेशा युवा, ताजा और सकारात्मक सोचवाला होता है। वह कभी दुखी नहीं होता। इसलिए संगीत को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिए।नाड़ियाँ (चंद्र, सूर्य, सुषुम्ना) जिन पर हमारा शरीर चलता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में कुल 12 स्वरों में से स्वरों के कुछ विशेष समूहों का चयन किया जाता है, उन पर कुछ नियम लागू होते हैं। इन स्वरसमुहो को राग कहाँ जाता है। प्रत्येक राग में दो मुख्य स्वर होते हैं। उन्हें वादी और संवादी कहाँ जाता है। इन दोनों स्वरों को केंद्र में रखकर स्वरों का अभिसरन होता है। इस स्वराभिसरन को सुनने से, विशिष्ट चक्र संतुलित हो जाते हैं और अपनी उचित गति में चलने लगते हैं। इसलिए इन चक्रो से संबंधित रोगों को दूर करने के लिए वर्तमान में संशोधन चल रहा है और इसके कुछ आशाजनक परिणाम दिखाई देने लगे हैं। इसे म्यूजिक थेरेपी या संगीतोपचार कहते हैं। हमारे भारत में भी कई संगीत विद्वान, डॉक्टरों की मदद से इस पर शोधकार्य कर रहे हैं। संगीत में ध्वनि तरंगें हमारे मन की सतह पर अशांति की लहरों को शांत करती है और सुनने वाले को आनंदित करती हैं। चूंकि ध्वनि निर्गुण, निराकार, अछूती, शुद्ध है, इसलिए यह मन में सात्विक गुणों को बढ़ाती है और मन को शुद्ध करती है। कई विद्वानों और विशेषज्ञों ने कहाँ है कि एक बार मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त हो जाने के बाद शारीरिक बीमारी ठीक हो जाती है। इसलिए संगीत और स्वास्थ्य के बीच संबंध जोड़ना सभी के लिए वांछनीय है। संगीत हर घर सुना जाना चाहिए। सभी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। सुरों की दुनिया में रंगा व्यक्ति हमेशा युवा, ताजा और सकारात्मक सोचवाला होता है। वह कभी दुखी नहीं होता। इसलिए संगीत को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिए।