लय और लयकारी
लय और लयकारी के परस्पर संबंधों की जानकारी तथा व्याख्या
प्रकृति में रहनेवाला प्रत्येक सजीव चेतनामय होता है। नदी, झरनों का बहना, सागर की लहरें, हिरन-हाथी जैसे प्राणियों का सामूहिक संचलन आदि विविध क्रियाओं से हमें गति की और उस गति से निर्मित चैतन्य की अनुभूति होती है। इन विभिन्न क्रियाओं में से कुछ क्रियाओं मे हमे एक प्रकार का अनुशासन दिखाई देता है, उदा. हृदय की धडकन, घड़ी की टिकटिक, आदि। सृष्टि का कालप्रवाह निरंतर आगे बढ़ते रहता है किंतु काल की इस गति का ज्ञान हमें नियमित रूप से होनेवाली दिवस-रात्रि जैसी क्रियाओं से ही प्राप्त होता है। किसी भी क्रिया के ऐसे नियमित संचलन से गति की जो अनुभूति हमें मिलती है उसे ही लय कहते है।
संगीत कला के दो प्रमुख आधार तत्व हैं, नादतत्व और लयतत्व। किसी भी संगीत प्रकार में विभिन्न नादों मे या नादाकृतियों में जो नियमित गति होती है, उसे ही लय कहते हैं। लय की कुछ परिभाषाएं
१) दो क्रियाओं में रहनेवाले समान कालांतर को लय कहते हैं।
२) काल के समांतर चलन को लय कहते हैं।
३) आघातो से निर्मित होनेवाली समबद्ध गति को लय कहते है।
४) समान कालांतर से होनेवाली क्रियाओं की अटूट श्रृंखला से मिलनेवाली अनुभूति को लय कहते हैं।
विभिन्न संगीत प्रकारों का अभ्यास करने से यह ज्ञात होता है कि हिंदुस्तानी संगीत छोड़कर लगभग सभी संगीत प्रकारों की प्रस्तुति एक ही लय में होती है। भारत में भी ध्रुपद संगीत और कर्नाटक संगीत एक ही लय में गाया बजाया जाता है। इन संगीत प्रकारों में निबद्ध रचनाओं का प्रस्तुतिकरण आरंभ से अंत तक एक ही लय मे किया जाता है, परंतु ख्याल की बंदिशों का प्रस्तुतिकरण धीमी गति से आरंभ होकर धीरे धीरे बढती हुई लय में संपन्न होता है। इसी कारण हिंदुस्तानी संगीत मे लय के विभिन्न प्रकार होते हैं। हिंदुस्तानी संगीत मे लय के तीन मुख्य प्रकार निम्नानुसार माने गये है-
१. विलंबित लय :-
विलंबित लय की गति अत्यंत धीमी होती है। दो मात्राओं के बीच का अंतराल बहुत बडा होता है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की रचनाओं का आरंभ विलंबित लयमे ही होता है। लंबे मात्राकाल के कारण ताल का आवर्तन भी दीर्घ होता है, जिसके कारण कलाकार को स्वर-शब्दों को तथा बंदिश को श्रोताओं के सामने स्पष्टता से रखने का और सजाने का पूरा अवसर प्राप्त होता है। इसलिये कलाकार की सर्जनशीलता और प्रयोगशीलता को अवसर प्रदान करनेवाली विस्तारक्षम रचनाएं विलंबित लय में प्रस्तुत की जाती है। शास्त्रीय गायन का बड़ा ख्याल तथा वादन की मसीतखानी गत, तबले का पेशकार तथा कथक नृत्य के ठाठ विलंबित लय मे प्रस्तुत किये जाते हैं।
२) मध्य लय :-
इस लय की गति मध्यम होती है। कई विद्वानों के मतानुसार मात्राकाल अगर एक सेकंड या उस के आसपास का हो तब वह लय मध्यलय होती है। अर्थात इस विषय मे काफी मतभेद है, फिर भी मध्य लय एक नैसर्गिक और स्वाभाविक लय की गति मध्यम होने के कारण इस लय मे बंधी हुए रचनाओं का आकलन सहजता से होता है। कलाकार की प्रयोगशीलता और सर्जनशीलता के साथ साथ तैयारी, लयदारी और लयकारी जैसी प्रस्तुति की विशेषताओं को भी इस लय मे पर्याप्त अवसर मिलता है, अर्थात् कलाप्रस्तुति के हर अंग की इस लय मे भली-भांति परीक्षा होती है। शास्त्रीय गायन का छोटा ख्याल, वादन की रजाखानी गते तथा तबले के कायदा आदि वादन प्रकार मध्य लय में ही प्रस्तुत किये जाते हैं।
३) द्रुत लय :-
इस लय की गति तेज होती है। दो मात्राओं में रहनेवाला अंतर बहुत ही कम होता है। गायन मे गले की, वादन में हाथ की और कथक नृत्य में पैरो की तैयारी दिखाना इस लय का मुख्य उद्देश्य है। इस लय में की गयी प्रस्तुति प्रायः चमत्कृत करती है, और दर्शक तथा श्रोताओ को विस्मित करती है। गायन मे प्रस्तुत कि जानेवाली ताने और तराना जैसी रचनाएं, वाद्यसंगीत का झाला, तबलावादन मे प्रस्तुत होनेवाली रेला तथा रौ एवं कथक नृत्य के तत्कार हमे द्रुत लय की अनुभूति देते हैं। लय के इन तीन मुख्य प्रकारो के अलावा अतिविलंबित लय और अतिद्रुत लय भी लय के प्रकार है जिनका अर्थ उन के नाम से ही स्पष्ट है।