तबला तथा पखावज में बांये का वादन में संतुलन बनाने के लिये आवश्यक रियाज की पद्धति।

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तबला तथा पखावज में बांये का वादन में संतुलन बनाने के लिये आवश्यक रियाज की पद्धति।

तबला तथा पखावज में बांये का वादन में संतुलन बनाने के लिये आवश्यक रियाज की पद्धति।


अ) तबला :-


तबला यह वाद्य दाया (तबला) और बाया (डग्गा) इन दो वाद्यों का एकत्रित अविष्कार है। तबले से निकलने वाले तारध्वनि और बाये से उत्पन्न होनेवाले खर्ज नादो के संयोग से तबला वाद्य से संगीत की निर्मिती होती है। तबला (दाया) यह वाद्य एकसुरा हैं, लेकीन बाये की बनावट और वादनशैली के कारण उस मे से निकलने वाले ख ध्वनीयों में बदलाव लाया जा सकता है। इस बदलाव के कारण तबलावादन में नादविविधता निर्माण होती है और तबला बोलने लगता है। इस का अर्थ यह है कि यदि तबलावादन प्रभावी करना हो तो बाये के बोलो मे संतुलन लाना आवश्यक है। इसी कारण बाये से विभिन्न नादो की निर्मिती करना उन पर प्रभुत्व लाना और तबले के बोलो के साथ उन का संतुलन करना यह तबलावादक के अभ्यास का अहम विषय है ।


बायो के अक्षरो मे संतुलन पाने का सरल अर्थ यह है की बाये से उत्पन्न होनेवाले विभिन्न नाद और उन नादो को निर्माण करने के तंत्र पर प्रभुत्व लाना। बाया वादन के अलग - अलग तंत्र, उन से निकलने वाले नादो की जानकारी और उन नादों पर प्रभुत्व लाने के लिये आवश्यक पद्धती की जानकारी निम्नानुसार


बाया वादन के तंत्र -


उंगलीयों का सीधा आघात हाथ की कलाई बाये के मैदान में स्याही के कोने को लगाकर मध्यमा या तर्जनी से लव में आघात कर के गुंजयुक्त नाद निकालना ।


 दाबतंत्र कलाई को मैदान या स्याही पर दबाकर तर्जनी या मध्यमा से लव मे आघात करने से नादनिर्मिती करना । कलाई का दबाव कम जादा करने से नादविविधता आती है, जिस से स्वर बदलाव का आभास उत्पन्न होता है। ३. घिस्सा तर्जनी या मध्यमा से लव मे आघात करते समय कलाई या अन्गुठे से स्याही पर घिसने से एक अलग ही नाद उत्पन्न होता है। घिसने की यह क्रिया ढोलक से प्रभावित है।मिंड उंगलीयों के आघात से उत्पन्न होनेवाली गुंज को कलाई से दबाकर मिंड उत्पन्न होती है।


गमक मिंड की क्रिया लगातार करने से गमकदार ध्वनी उत्पन्न होते है। ६. खुला बाज हाथ के पंजे से बाये के मैदान में आघात कर के खुला और गुंजयुक्त नाद निर्माण करना। यह नाद और क्रिया पखावज से प्रभावित है।


बंद आघात यह नाद गुंज विरहीत होते हैं। ऐसे बंद नाद पंजा, उंगलीया, नाखून का पिछला हिस्सा तथा बंद मुट्ठी से निर्माण किया जाता है। उपर दिये गये तंत्र तथा उन तन्त्रो के प्रयोग से निर्माण होनेवाले विभिन्न नादो पर प्रभुत्व लाने के लिये जिन शब्दबंधो का उपयोग जादातर किया जाता है, उन की जानकारी निम्नानुसार


सीधा आघात 

धाधा तिट धाधा तुना ताता तिट धाघा धिना

धाती धाती धाधा तीना ताती धाती घाघा धिना अथवा 


तीनताल का ठेका निम्नानुसार बजाकर 

धागेगेगे धीगेगेगे धीगेगेगे धागेगेगे

धागेगेगे धीगेगेगे धीगेगेगे धागेगेगे 

धागेगेगे तीकेकेके तीकेकेके ताकेकेके 

ताकेकेके धीगेगेगे धीगेगेगे धागेगेगे

इस रचना में तर्जनी और मध्यमा को एक के बाद एक बजाने का अभ्यास होता है और सीधे आघातो का रियाज भी होता है।


दाब तंत्र इस तंत्र के अभ्यास के लिये सब से जादा उपयुक्त बोल है : धागे धीनागेना धागे धीनागेना धीनागेना धागे धीनागेना धागे घिना धागे तीनाकेना...और खाली इस रचना मे रहनेवाले धागे इस शब्दबंध को बाये पर दबाकर नाद निर्माण किया जाता है।


 घिस्सा, मिंड और गमक इन तीनों तंत्र पर प्रभुत्व लाने के लिये अजराडा घराने के नीचे दिये कायदो का रियाज उपयोगी है।


धागेन धात्रक विकीट धागेन धात्रक धीनाग धीनधीनागिन श्रीनाग धीनधीनागेन धागेन धात्रक धीनाग तीनतीनाकेना


धा धीन धाउधाउतकधीन धाऽगनधातिट धीनधीनागेना तकधीन धाऽघातकधीन धाऽगनघातिट घिनतीनाकेन


 घिना घागेना धात्रक धागेना धात्रक धातीधा घिनधीनागेना धात्रक घातीधा घिनाधातोघीना धात्रक घातीधा घिनतीनाकेना


खुला बाज यह वादन पखावज से प्रेरित है, इसलिये नीचे दिये कुछ पखवाज के रेले इस बाज पर प्रभुत्व लाने के लिये उपयुक्त है।


धातिर कीटधा तिटकत गदिगन


तकधुम कीटतक धूमकीट धुमकिट तकतक धुमकीट तकतक धूमकीट


बंद आघात उपर दिये गये सभी कायदो का काल अंग (खाली का हिस्सा), तिरकीट, धिरधिर, दीनतक के रेले इन शब्दबंधों के रियाज से बंद आघातों पर प्रभुत्व लाया जा सकता है। बाये से उत्पन्न होनेवाले विविध नाद, उन नादो को निर्माण करने के लिये उपयोगी तंत्र और उन तन्त्रों पर प्रभुत्व पाने के लिये और वाये के बोलो मे संतुलन लाने के लिये उपयुक्त बोलो की हमने जानकारी ली, लेकीन इन तन्त्रो का अभ्यास और नादो का संस्कार समर्थ गुरु से ही प्राप्त करना आवश्यक है साथ साथ अच्छे तबलावादको का वादन नियमित सुनना चाहिये ।


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