कोदऊ सिंह परम्परा भाग २

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कोदऊ सिंह परम्परा भाग २


 कोदऊ सिंह के पास विभिन्न प्रकार की रचनाओं का अगाध भंडार था। कहते हैं कि अपनी पुत्री की शादी में दामाद काशी प्रसाद को दहेज स्वरूप चौदह सौ परने उन्होंने भेंट की थी, जिन्हें पुत्री धन समझकर फिर कभी नहीं बजाया। उन्होंने स्वयं हजारों परनो की रचना की थी, जिनमें गज परन, बाज बहेरी परन, समुद्र लहरी परन, शिव तांडव परन, मनमोर परन, अश्व पग्न, घटा तोप परन, कड़क बिजली परन, काली परन, दुर्गा परन, गणेश परन आदि प्रमुख हैं। कहते है कि वे जब पंचदेवी स्तुति परण बजाते थे तो देवी के सामने रखा हुआ नारियल सम पर स्वतः टूट जाता था। दतिया स्थित कोदऊ सिंह का घर आजकल अग्रवाल धर्मशाला के नाम से जाता है, और उनकी समाधि दतिया से डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर दतिया उन्नाव मार्ग पर उपेक्षा का शिकार है।


महाराज कोदऊ सिंह के शिष्यों में सितारे हिंद पं. मदन मोहन उपाध्याय, बाबा राम कुमार दास (अयोध्या), पं. भैयालाल (दरभंगा), जगन्नाथ पारीक (राजस्थान), दिलीप चंद्र भट्टाचार्या (बंगाल), शंभु दयाल (पीलीभीत, उ.प्र.), बड़े पर्वत सिंह (बनारस), देवकी नंदन पाठक, विष्णु देव पाठक (दरभंगा), लाला हरचरण लाल झल्ली (टीकमगढ़), खिल्ली नागर्च (दतिया), ज्ञानी हरनाम सिंह तथा रागी फम्मन सिंह (पंजाब), बलवंत राव ताने (महाराष्ट्र), चिरंजी लाल (मथुरा), चेतन गिरी (सिंघ, हैदराबाद), पं. मदन मोहन (सोरा वाले), बदलू और चंतरा नामक दो भाइयों सहित उनके अनुज राम सिंह, भतीजे जानकी प्रसाद और दामाद काशी प्रसाद के नाम विशेष उल्लेखनीय है। कोदऊ सिंह के अनुज राम सिंह ने भी इस परम्परा का यथेष्ट प्रचार- प्रसार किया। राम सिंह के पुत्र जानकी प्रसाद भी श्रेष्ठ पखावजी हुए। ये दतिया दरबार से भी जुड़े रहे। इनके पुत्र गया प्रसाद और पौत्र पद्मश्री पं. अयोध्या प्रसाद ने भी अपनी परम्परा का सफल प्रतिनिधित्व किया। पं. अयोध्या प्रसाद के सबसे छोटे लाल शर्मा वर्तमान में इस परंपरा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। पुत्र रामजी


कोदऊ सिंह की रचनाओं की शैलीगत मौलिकता के कारण ही एक नवीन वादन शैली विकसित हुई। इनकी वादन शैली ओजपूर्ण और गंभीर थी। हथेलियों का प्रयोगइस परंपरा में अधिक होता है । जोरदार, क्लिष्ट और एक दूसरे से गुंथे हुए वर्णों से निर्मित इस परंपरा की अधिकांश परणे अपेक्षाकृत लम्बी होती हैं । २४-२४ आवर्तन की परणें इस परंपरा में प्रचलित है। साहित्य की दृष्टि से भी ये परने उच्चकोटि की होती हैं । इन परणों में प्रयुक्त वर्णों का गठन प्रायः चकित करनेवाला होता है। हाथ अंगुलियों की शुद्धता, ध्वनि एवं बोलो की स्पष्टता, शुद्ध एवं बोलों के पूर्ण निकास पर इस घराने में विशेष बल दिया जाता है। धड़गण, धड़न्न, तन्न धिलांग, धुमकिट, घेत्ता, क्रिधेत, तक्का थुंगा आदि जैसों वर्णसमूहों का इस परम्परा में प्राधान्य दिखता है। कोदऊ सिंह परम्परा का बाज पूरी तरह खुला बाज है, और इसका प्रसार लगभग पूरे भारत में है।


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