हार्मोनियम, ढोलक हिंदी जनकारी
सुगम संगीत में प्रयुक्त होनेवाले वाद्य सुगम संगीत को भावसंगीत, सरल संगीत, लाईट म्युजिक भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत भावगीत, भजन, गजल इत्यादि गीतप्रकार आते हैं। सुगम संगीत यह शब्दप्रधान गायकी है। शब्दों से अपेक्षित भाव निर्मिती के लिये अनुकूल वाद्यों की संगती अपेक्षित होती है। जैसे की, तालवाद्यों में तबला, मृदंग, ढोलक आदि वाद्य तथा सूरवाद्यों में हार्मोनियम, बाँसुरी, सारंगी, सरोद, सितार, व्हायोलिन जैसे अनेक वाद्यों का प्रयोग किया जाता है। आजकल सुगम संगीत के कार्यक्रमों में सिंथेसायजर जैसा इलेक्ट्रॉनिक वाद्य अनेक वाद्यों की भूमिका निभाते हुए दिखाई देता है । सुगम संगीत में प्रयोग किये जानेवाले तबला, हार्मोनियम, सितार जैसे कई वाद्य शास्त्रीय संगीत में स्वतंत्र तथा संगत के रूप में बजाये जाते है। उसीप्रकार ढोलक, ढोलकी जैसे वाद्य लोकसंगीत में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है ।
१. हार्मोनियम - हार्मोनियम वाद्य का निर्माण पाश्चात्य देशों में हुआ है। आज यह वाद्य भारतीय संगीत का जनप्रिय वाद्य बन चुका है। पाश्चात वाद्यवर्गीकरण अनुसार हार्मोनियम के साथ-साथ हॉस्पिकॉर्ड, पियानो, ऑर्गन इन वाद्यों का 'की बोर्ड' इस श्रेणी में अंतर्भाव क्रिया है। वर्तमान में प्रचलित हार्मोनियम वाद्य की निर्मिती इ.स. १८४०में फ्रान्स के अलेक्झांडर फ्रा द वे ने कि है। पाश्चात्य संगीत का 'हार्मनी' यह प्रमुख तत्व है। जिसके निर्माण के लिये 'हार्मोनियम' यह योग्य वाद्य है। इसी कारण निर्माता ने इस वाद्य का नाम 'हार्मोनियम' रखा ऐसा कहा जाता है। शुरू के दौर में पॅरिस और जर्मन बनावट की हार्मोनियम भारत में जनप्रिय थी। १९०१ में भारत ने सर्वप्रथम रोडस बनाना प्रारंभ किया। आज भारत में भावनगर, पंजाब और पालिठाणा इन जगाओ कि रीड्स विशेष प्रिय है। हार्मोनियम के प्रमुख अंगो में कॅबिनेट, की बोर्ड, रोड, फिंगर बोर्ड इनका उल्लेख किया जाता है। सामान्यतः ढाई सप्तक से लेकर पौने चार सप्तक तक हार्मोनियम उपलब्ध होती है। हार्मोनियम के रीड्स क्षितिज समांतर (Horizontal) या लंबाकृती (Vertical) इन दो प्रकार के होते है । आजकल के हार्मोनियम में स्केलचेंज और कपलर की सुविधा होती है। हार्मोनियम वाद्य को जनप्रिय बनाने का श्रेय गणपतभैय्या, पं. गोविंदराव टेंबे, पं. गोविंदराव पटवर्धन, पं. अप्पा जळगांवकर, पं मनोहर चिमोटे इन कलाकारों को जाता है।
२. ढोलक - पंजाब प्रांत के लोकसंगीत में ढोलक विशेष लोकप्रिय है। बैसाखी जैसे पारंपारिक उत्सव में ढोलक, अलगोजा आदि वाद्यों का प्रयोग विशेष रूप से होता है। आज सुगम संगीत में अनेक गीतों के लिए ढोलक यह महत्त्वपूर्ण वाद्य बन चुका है। ढोलक यह वाद्य आम, शीशम, सागौन, नीम, जामुन आदि लकड़ी से बनी होती है। यह दोमुखी तथा अंदर से खोखली होती है। इसके दोनों मुखपर बकरे की खाल का चमड़ा मढ़ा होता है। जिन्हे डोरियों द्वारा वाद्य पर कसा जाता है। डोरियों में गोल छल्ले पडे होते हैं, जिनका प्रयोग वाघ को ढीला करने तथा कसाव लाने हेतु किया जाता है। दाहिना मुख ऊँचे स्वर में और बायाँ मुख नीचे स्वर में (मुख्यतः मन्द्र सप्तक के स्वरों में) बोलता है। इसी हेतु बाएँ मुख पर मढा जानेवाला चमड़ा दाएँ की अपेक्षाकृत मोटा होता है।