श्रुति
नित्यं गीतोपयोगित्वमभिज्ञेयत्वमप्युत ।
लक्षे प्रोक्त सुपर्याप्त संगीतश्रुतिलक्षणाम ।।
अर्थात -वह आवाज जो गीत में प्रयोग की जा सके और एक दूसरे से अलग एवं स्पष्ट पाहिचानी जा सके , उसे "श्रुति " कहते हैं ।
तस्य द्वाविंशतिर्भेदा: श्रवणात श्रुतयो मता:।
हृदयभ्यंतरसंलग्ना नाड्यो द्वाविंशतिर्मता: ।।
- स्वरमेलकलानिधी
अर्थात हृदय स्थान में 22 नाड़ियां लगी हुई है , उनके सभी नाद स्पष्ट सुने जा सकते हैं । अतः उन्हें ही श्रुति कहते हैं । नाद के 22 भेद माने गए हैं ।
हमारे संगीत शास्त्रकार प्राचीन समय से ही 22 नाद मानते चले आ रहे हैं । वह नाद क्रमशः एक से दूसरा ऊंचा , दूसरे से तीसरा ऊंचा , तीसरे से चौथा, इस प्रकार चढते चले गए हैं । इन्हीं 22 नादो को 'श्रुति' कहते हैं । क्योंकि 22 श्रुति पर गायन में सर्वसाधारण को कठिनाई होती, अतः इस 22 में से 12 स्वर चुनकर गायन कार्य होने लगी होने लगा । इन 12 स्वरों में सात स् शुद्ध स्वर और पांच विकृत स्वर होते हैं । 22 श्रुतियों में यह सात स्वर क्रमशः 1, 5, 8 ,10, 14, 18, 21 वी श्रुतीयों पर माने गए हैं । जिनका नाम षड्ज, रिषभ, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद है। इन्हीं के संक्षिप्त नाम सा, रे, ग ,म, प, ध ,नि है ।