भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रकार

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भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रकार


दक्षिणी/कर्नाटक संगीत और उत्तरी संगीत

भारत वर्ष में दो संगीत प्रणालियाँ प्रसिद्ध है-

(1)     कर्नाटक की संगीत प्रणाली (2) हिंदुस्तानी संगीत प्रणाली

कर्नाटक की संगीत पद्धति को ही दक्षिण संगीत पद्धति भी कहते हैं यह मद्रास प्रांत मैसूर तथा आंध्र प्रदेश में प्रचलित है

िंदुस्तानी संगीत प्रणाली को ही उत्तरी संगीत पद्धति भी कहते हैं यह मद्रास प्रांत, मैसूर तथा आंध्र देश को छोडकर शेष समस्त भारत में प्रचलित है ।

वास्तव में इन दोनों संगीत पद्धतियों के मूल सिद्धांतों में विशेष अंतर नहीं है इन दोनों पद्धतियों में जो समानता और भिन्नता है वह देखिए:-

                        

                             समानता

1-       दोनों पद्धतियों में ही शुद्ध विकृत मिलकर कुल 12 स्वर स्थान है

2-        दोनों पद्धतियों में ही उपरोक्त 12 स्वरों से थाट उत्पत्ति होकर राग गाये बजाए जाते हैं ।

3-        दोनों पद्धतियों में आलाप गायन स्वीकार किया गया है

4-       दोनों में ही आलाप एवं तानों के साथ चीजें गायी जाती है ।

5-         जन्यजनक (थाट राग) का सिद्धांत दोनों में ही स्वीकार किया गया है ।

 

                        ेद

1-       उत्तर संगीत पद्धति में और दक्षिण संगीत पद्धति में यद्यपि स्वर स्थान बाराह माने गए हैं , किंतु दोनों के स्वर तथा नामों में अंतर है ।

2-        उत्तर संगीत पद्धति में केवल 10 थाटों से रागों की उत्पत्ति हुई है, किंतु दक्षिण पद्धति में 72 जनक थाटों का प्रमाण मिलता है

3-        दक्षिण पद्धति की चीजें, कानडी, तेलगु, तमिल इत्यादि भाषाओं में रची हुई होती है और उत्तरी संगीत पद्धति के गीत ब्रजभाषा, हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, मारवाड़ी इत्यादि भाषाओं में होते हैं

4-       दोनों पद्धतियों के ताल भिन्न होते हैं ।

5-        दोनों संगीत पद्धतियों में स्वर उच्चारण एवं आवाज निकालने की शैलियाँ भिन्न भिन्न है ।

6-        इन पद्धतियों में राग अपने-अपने स्वतंत्र हैं । अर्थात दक्षिणी राग उत्तरी रागों से समानता नहीं रखते

7-        दक्षिण पद्धति के शुद्ध सप्तक को ‘कनकंगी’ अथवा मुखरी मेल कहते हैं, किंतु उत्तरी संगीत के शुद्ध स्वर शब्दों को ‘ बिलावल थाट कहा गया है ।

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