उत्तरी और दक्षिणी स्वरों की तुलना
कर्नाटक (दक्षिणी)
तथा हिंदुस्तानी (उत्तरी)
दोनों ही पद्धतियों में एक सप्तक में 12 स्वर माने
गए हैं, किंतु उनके नामों में कहीं-कहीं परिवर्तन हो गया है,
जैसे कर्नाटकीय शुद्ध रे, ध हमारी
हिंदुस्तानी पद्धति के कोमल रे, ध के समान है
तथा हमारे शुद्ध रे - ध उनके शुद्ध ग - नी है ।
हिन्दुस्तानी स्वर
कर्नाटक की (दक्षिणी)
स्वर
(1) सा सा
(2) कोमल रे शुद्ध रे
(3) शुद्ध रे पंच श्रुति रे या ग
(4) कोमल ग। षट श्रुती रे, साधारण ग
(5) शुद्ध ग अंतर ग
(6) शुद्ध म शुद्ध म
(7) तीव्र म प्रति
म
(8) प प
(9) कोमल ध शुद्ध ध
(10) शुद्ध ध पंच श्रुती ध, या नि शुद्ध
(11) कोमल
नि षट श्रुति ध, या कौशिक नि
(12) शुद्ध नी काकली नि
क्योंकि
हमारे कोमल रे ध उनके शुद्ध रे, ध हैं और हमारे शुद्ध रे ध उनके शुद्ध ग - नी
है, अतः उनके (कर्नाटक) स्वरों के अनुसार शुद्ध वर्ष अब तक इस प्रकार
होगा
सा रे
ग म
प ध नि - कर्नाटकी
सा रे
रे म
प ध
ध - हिंदुस्तानी
उपरोक्त कर्नाटकी शुद्ध सप्तक को दक्षिणी
विद्वान ‘मुखारी
मेल’ कहते हैं । कर्नाटकी
स्वरों में किसी स्वर को कोमल अवस्था में नहीं माना गया है , अर्थात उनके शुद्ध स्वर ही सबसे नीचे अवस्था में है । जब
उनका रुप बदलता है अर्थात विकृत होते हैं तो वे
और नीचे न हटकर ऊपर को जाते है,
जैसे शुद्ध रे के आगे उनका चतु श्रुति रे आता है, इसी को वे
शुद्ध ग कहते हैं और शुद्ध ग के
आगे साधारण ग फिर अंतर ग नाम
उन्होंने दिए हैं ।
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