अभंग: संतों की वाणी में संगीत का दर्शन

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🌼 अभंग: संतों की वाणी में संगीत का दर्शन

भारतीय भक्ति आंदोलन ने समाज में समानता, प्रेम और ईश्वर भक्ति का जो संदेश दिया, उसमें अभंग का योगदान अमूल्य है। यह केवल एक काव्य रूप नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है। अभंगों ने लोक भाषा, संगीत और अध्यात्म — तीनों को जोड़कर जनसामान्य तक ईश्वर की अनुभूति पहुँचाई।


🎵 अभंग की उत्पत्ति और भावनात्मक शक्ति

अभंग परंपरा की जड़ें महाराष्ट्र के संत परंपरा में गहराई से जुड़ी हैं। संत ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी के माध्यम से संस्कृत वेदांत को मराठी में प्रस्तुत किया, तो संत नामदेव और संत तुकाराम ने अभंगों के माध्यम से भक्ति को गाया
यह भक्ति किसी मंदिर या शास्त्र तक सीमित नहीं थी — यह तो खेतों, गलियों, डोंगर-पहाड़ों और साधारण लोगों के जीवन का हिस्सा बन गई।

अभंग में न कोई कठिन राग, न जटिल शब्द — केवल सरलता, सच्चाई और भक्ति का रस। यही कारण है कि हर व्यक्ति, चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित, इन अभंगों को गुनगुनाते हुए विठ्ठल के दर्शन कर पाता है।


🎶 वारकरी परंपरा और अभंगों का संगीत

वारकरी संप्रदाय की आत्मा ही संगीत है। वारकरी संत मानते हैं कि संगीत ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है।
वारकरी जब पालखी यात्रा में पंढरपुर की ओर निकलते हैं, तब हजारों की संख्या में अभंग गूंजते हैं —

“आता विश्वात्मका देवा, तूचि माझा गुरू”
“माझे माहेर पंढरी, आबा विठ्ठल नावाचा”

इन अभंगों में न कोई मंच है, न कोई कलाकार — केवल भक्त और भगवान का संवाद
पखवाज, मृदंग, मंजीरा और चिपळ्या की ताल पर भक्तों के कदम लयबद्ध हो उठते हैं। इस सामूहिक गायन में जो ऊर्जा और भक्ति का प्रवाह होता है, वह किसी भी संगीत कार्यक्रम से अधिक गूंजता है।


🪶 संतों की वाणी में दर्शन और समाज सुधार

अभंग केवल ईश्वर की आराधना नहीं करते, बल्कि समाज को दिशा भी देते हैं।
संत तुकाराम ने अभंगों के माध्यम से दंभ, अंधविश्वास और अन्याय का विरोध किया।
उनकी वाणी में भक्ति के साथ-साथ सामाजिक चेतना भी थी —

“ऐसा विठ्ठल असेल काय? जो भुकेल्याला देत नाही अन्न”

संत चोखामेळा ने अस्पृश्यता और भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई।
उनके अभंग आज भी समानता और मानवता का संदेश देते हैं।
इसी तरह, संत नामदेव के अभंगों में निर्दोष भक्ति और बालसुलभ प्रेम का भाव झलकता है।


🌿 अभंगों की संगीतात्मकता

अभंगों की रचना इस तरह की गई है कि वे गाने में सहज और याद रखने में सरल हों।
अक्सर इन्हें राग भैरव, कल्याण, या पहाडी जैसे सरल रागों में गाया जाता है, ताकि हर व्यक्ति उन्हें अपना सके।
अभंग का छंद लयबद्ध होता है — उसमें ताल का सौंदर्य और भाव का विस्तार दोनों होते हैं।
यह सरलता ही वारकरी संगीत की पहचान है।


🌸 आधुनिक युग में वारकरी संगीत की पुनर्प्रेरणा

आज के डिजिटल युग में भी अभंग अपनी पहचान बनाए हुए हैं।
कई युवा कलाकार, जैसे महेश काळे, जयदीप वर्वेकर, पंडुरंग पवार, इत्यादि ने इस परंपरा को आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया है।
स्टेज, सोशल मीडिया और यूट्यूब के माध्यम से अभंग फिर से लोगों के दिलों तक पहुँच रहे हैं।
वारकरी संगीत अब केवल मंदिरों या यात्राओं तक सीमित नहीं — बल्कि मंचों, रेडियो, पॉडकास्ट और कक्षाओं तक फैल चुका है।


✨ निष्कर्ष

अभंगों की वाणी हमें यह सिखाती है कि संगीत केवल स्वर नहीं, बल्कि ईश्वर का अनुभव है।
जब कोई वारकरी “विठ्ठल विठ्ठल जय हरि विठ्ठल” गाता है, तो उसमें न केवल स्वर की मिठास होती है, बल्कि आस्था, समर्पण और प्रेम का संदेश भी होता है।
संतों की इस परंपरा ने भारत की सांस्कृतिक आत्मा को संगीतमय बनाया है।

“संगीत ही भक्ति है, और भक्ति ही मुक्ति का मार्ग।”



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