राग मल्हार

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राग-मल्हार

राग मल्हार

 भारतीय शास्त्रीय संगीत में राग मल्हार एक अत्यंत महत्वपूर्ण और समृद्ध संगीतिक परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। यह राग विशेष रूप से मानसून ऋतु से जुड़ा हुआ है और इसकी विविध प्रकार की रचनाओं ने भारतीय संगीत में अमिट छाप छोड़ी है। मिया तानसेन जैसे महान संगीतकारों द्वारा विकसित, मल्हार की विभिन्न शैलियां आज भी शास्त्रीय संगीत में अत्यंत लोकप्रिय हैं। इस शोध में हम मल्हार राग के इतिहास, इसके विभिन्न रूपों, संगीतात्मक विशेषताओं और इसके सांस्कृतिक महत्व का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करेंगे। भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा में मल्हार राग का उल्लेख प्राचीन काल से मिलता है। यह राग विशेष रूप से वर्षा ऋतु से जुड़ा हुआ है और इसकी उत्पत्ति के पीछे अनेक पौराणिक कथाएँ हैं। मल्हार रागों का समूह हिंदुस्तानी संगीत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसकी कई उपशैलियां हैं, जिनमें मियां मल्हार, मेघ मल्हार, सूरदासी मल्हार, राघ मल्हार आदि प्रमुख हैं। मियां मल्हार राग संगीत सम्राट मियां तानसेन द्वारा सोलहवीं शताब्दी में रचित एक अद्भुत संगीत रचना है। यह राग विशेष रूप से मानसून ऋतु के दौरान गाया जाता है और इसका उपयोग परंपरागत रूप से वर्षा को आमंत्रित करने के लिए किया जाता है। तानसेन, जिनका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था, अपने जीवन का अधिकांश समय भक्ति संगीत की रचना में व्यतीत किया और बाद में वे मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक बने। मियां मल्हार की रचना के पीछे की कहानी भारतीय संगीत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। माना जाता है कि तानसेन की अद्भुत संगीत प्रतिभा ने इस राग के माध्यम से वर्षा लाने की क्षमता विकसित की थी, जिससे यह लोकप्रिय मान्यता बनी कि वे अपने गायन से आकाश से वर्षा करा सकते थे।


मल्हार के प्रमुख प्रकार


मियां मल्हार की संगीतात्मक विशेषताएं

मियां मल्हार राग की अपनी विशिष्ट संगीतात्मक पहचान है। इसमें निषाद, धैवत और गंधार स्वरों का विशिष्ट प्रयोग होता है। इस राग की बंदिश, सरगम, आरोह-अवरोह और गत की एक विशेष संरचना होती है जो इसे अन्य रागों से अलग करती है। मियां मल्हार को सांझ के समय गाया जाता है और इसका वातावरण गंभीर और गहरा होता है, जो वर्षा ऋतु के आगमन का संकेत देता है।


मेघ मल्हार: संरचना और स्वरूप

मेघ मल्हार भी मल्हार परिवार का एक प्रमुख राग है, जो अत्यंत मधुर और गंभीर वातावरण उत्पन्न करता है। इस राग के स्वरों की संरचना राग मधुमाद सारंग के समान है, परंतु इसमें कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं। मेघ मल्हार में रिषभ स्वर हमेशा मध्यम के कण स्वर के साथ प्रयुक्त होता है, जबकि मधुमाद सारंग में ऐसा नहीं होता। मेघ मल्हार में "नि१-प" का प्रयोग मींड के साथ किया जाता है, जहां पंचम को कण स्वर के रूप में लेते हुए "(प)नि१-प" का प्रयोग होता है। इस राग का वादी स्वर "सा" है। मेघ मल्हार एक प्राचीन राग होने के कारण इसमें ध्रुवपद अंग का प्रभाव है, जिससे इसमें गमक और मींड का अधिक प्रयोग किया जाता है।


अन्य मल्हार प्रकार

मल्हार राग परिवार में कई अन्य प्रकार भी शामिल हैं, जैसे सूरदासी मल्हार, गौड़ मल्हार, और चंद्रकांत मल्हार। प्रत्येक प्रकार की अपनी विशिष्ट संगीतात्मक पहचान और वातावरण है, लेकिन सभी में मूल रूप से वर्षा ऋतु का भाव निहित है।


मल्हार और वर्षा ऋतु का संबंध


सांस्कृतिक महत्व

मल्हार रागों का भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान है। ये राग मानसून के आगमन, प्रकृति के नवीनीकरण और जीवन के पुनर्जन्म के प्रतीक हैं। विशेष रूप से मियां मल्हार को वर्षा को आमंत्रित करने और धरती को भिगोने के लिए गाया जाता है। यह भारतीय समाज में ऋतु चक्र और प्रकृति के साथ मानव के गहरे संबंध को दर्शाता है।


किंवदंतियां और लोक मान्यताएं

मल्हार रागों से जुड़ी अनेक किंवदंतियां और लोक मान्यताएं हैं। सबसे प्रसिद्ध कहानी तानसेन से जुड़ी है, जिन्होंने कहा जाता है कि अपने मियां मल्हार के गायन से दीपक राग के कारण उत्पन्न अत्यधिक गर्मी को शांत किया था। इन कहानियों ने मल्हार रागों को एक रहस्यमय और अलौकिक आभा प्रदान की है, जो आज भी इन रागों के प्रति लोगों के आकर्षण का कारण है।


मल्हार रागों की तकनीकी विशेषताएं


स्वर संरचना और प्रयोग

मल्हार रागों की स्वर संरचना में कुछ विशिष्ट प्रयोग होते हैं। मेघ मल्हार में रिषभ और पंचम की संगति मल्हार अंग को प्रदर्शित करती है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जा सकता है और इसकी जटिलता के कारण इसे गुरुमुख से सीखकर ही आत्मसात किया जा सकता है।


गायन और वादन शैलियां

मल्हार रागों को गाने और बजाने की विशिष्ट शैलियां हैं। इन रागों में विलंबित (धीमी गति) से शुरू करके मध्य और द्रुत लय तक का प्रयोग किया जाता है। मल्हार रागों में ठुमरी, ख्याल, ध्रुपद और धमार जैसी विभिन्न गायन शैलियों का प्रयोग होता है। वादन में भी इन रागों का विशेष महत्व है, विशेषकर सितार, सरोद और बांसुरी जैसे वाद्य यंत्रों पर।


आधुनिक युग में मल्हार का महत्व


फिल्मों और समकालीन संगीत में प्रयोग

आधुनिक काल में मल्हार रागों का प्रयोग हिंदी फिल्म संगीत और फ्यूजन संगीत में भी किया गया है। कई प्रसिद्ध फिल्मी गीतों में मल्हार राग का प्रभाव देखा जा सकता है, विशेष रूप से वर्षा ऋतु को दर्शाने वाले दृश्यों में। इसके अलावा, आधुनिक संगीतकारों ने मल्हार को पाश्चात्य संगीत के साथ मिलाकर नए प्रयोग भी किए हैं।


संरक्षण और प्रसार

शास्त्रीय संगीत के संरक्षण में मल्हार रागों का महत्वपूर्ण योगदान है। विभिन्न घरानों और संगीत संस्थाओं द्वारा इन रागों का अध्ययन और प्रसार किया जाता है। आज भी संगीत के विद्यार्थी इन रागों का अध्ययन करते हैं और इनके माध्यम से भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।


निष्कर्ष

राग मल्हार और इसकी विविध शैलियां भारतीय शास्त्रीय संगीत की अमूल्य धरोहर हैं। इन रागों का विकास सदियों से हुआ है और आज भी ये भारतीय संगीत और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। मियां मल्हार, जिसे महान संगीतकार तानसेन ने रचा था, वर्षा ऋतु का प्रतीक बन गया है। इसी प्रकार, मेघ मल्हार अपनी जटिल स्वर संरचना और गंभीर वातावरण के लिए जाना जाता है। मल्हार रागों का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व इनकी संगीतात्मक सुंदरता से परे है। ये राग भारतीय जीवन और प्रकृति के साथ मानव के गहरे संबंध को दर्शाते हैं। आधुनिक युग में भी इन रागों की प्रासंगिकता बनी हुई है, और ये नई पीढ़ी के संगीतकारों और श्रोताओं को प्रेरित करते रहेंगे। भविष्य में, मल्हार रागों के अध्ययन और प्रचार के लिए और अधिक शोध और प्रयास की आवश्यकता है। इन रागों की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने के साथ-साथ इनके आधुनिक प्रयोगों को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि भारतीय शास्त्रीय संगीत की यह अमूल्य परंपरा आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवंत रहे।


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