भारतीय तंतुवाद्य वाद्ययंत्रों की मधुर यात्रा
भारतीय संगीत की आत्मा यदि कहीं बसती हो, तो वह तंतुवाद्य वाद्ययंत्रों की मधुर ध्वनियों में होती है। ये वाद्ययंत्र न केवल रचनात्मकता और अभिव्यक्ति के माध्यम हैं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत के संवाहक भी हैं। इस ब्लॉग में हम भारत के प्रमुख तंतुवाद्य वाद्ययंत्रों की जानकारी प्राप्त करेंगे।
1. तानपूरा (Tanpura)
तानपूरा एक हार्मोनिक वाद्ययंत्र है जो मुख्यतः साथ देने के लिए बजाया जाता है। यह राग की स्थिरता बनाए रखने में सहायता करता है। इसके चार तार होते हैं, और इसे रगड़ कर नहीं बल्कि खुले तारों को झंकारते हुए बजाया जाता है।
2. सितार (Sitar)
सितार भारतीय शास्त्रीय संगीत का अत्यंत लोकप्रिय वाद्ययंत्र है। इसकी ध्वनि गूंजदार और गूढ़ होती है। उस्ताद विलायत खान और पंडित रविशंकर ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर ख्याति दिलाई।
3. सरोद (Sarod)
सरलता से जटिलता की ओर ले जाने वाला वाद्य, सरोद धातु के फिंगर प्लेट और चमड़े के झिल्ली वाले हिस्से के साथ बजाया जाता है। इसकी आवाज भारी, गंभीर और भावनात्मक होती है।
4. वीणा (Veena)
वीणा प्राचीन भारत का एक प्रतिष्ठित वाद्ययंत्र है, विशेषकर दक्षिण भारत में। इसका संबंध देवी सरस्वती से भी जोड़ा जाता है। यह वाद्ययंत्र राग की सूक्ष्मता को अभिव्यक्त करने की अद्वितीय क्षमता रखता है।
5. इसराज और दिलरुबा
इन दो वाद्ययंत्रों का प्रयोग विशेष रूप से गुरमत संगीत (सिख परंपरा) में किया जाता है। यह धनुष से बजाए जाने वाले तंतुवाद्य हैं जिनकी ध्वनि बहुत कोमल और भावपूर्ण होती है।
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निष्कर्ष:
तंतुवाद्य वाद्ययंत्र न केवल संगीत की ध्वनि को आकार देते हैं, बल्कि हमारे रागों की आत्मा को भी प्रकट करते हैं। इनका अध्ययन और अभ्यास केवल एक वादन नहीं, बल्कि साधना है।