संगीत का सर्वश्रेष्ठ स्थान
संगीत का ललित कलाओं में सर्वोच्च स्थान है, इसे सिद्ध करने के लिए हम संगीत के पक्ष में निम्न तर्क दे सकते हैं। वास्तु, मूर्ति तथा चित्रकला से उच्च स्थान काव्यकला व संगीतकला का है, अतः यहां हम काव्य व संगीत की तुलना करेंगे। निम्न तर्क संगीत को, काव्य की अपेक्षा श्रेष्ठता सिद्ध करते हैं -
(1) सम्पूर्ण जगत प्रभावित - काव्य का प्रभाव केवल मनुष्य मात्र पर पड़ता है, संगीत का प्रभाव मनुष्य के अतिरिक्त पशु-पक्षी, वृक्ष, पाषाण सभी पर होता है। तानसेन, बैजू बावरा के उदाहरण इस बात की पुष्टि करते हैं। गायों द्वारा अधिक दूध दिए जाने तथा पौधों कीअच्छी बढ़त पर संगीत के प्रभाव के सफल प्रयोग किये जा चुके हैं। डॉक्टर अनेक रोगों की चिकित्सा (मनोरोग पर) में संगीत का सहारा लेते हैं। अतः सम्पूर्ण प्रकृति, जगत संगीत से प्रभावित है।
(2) शिक्षा तथा भाषा की बाधा - भाषा तथा शिक्षा की बात के कारण काव्य के प्रभाव की सीमा और भी संकुचित हो जाती है। काव्य के प्रभाव की एक बाधा है, भाषा। यदि भाषा (जिस भाषा में काव्य है) का ज्ञान अथवा समझ नहीं है तो श्रोता अथवा पढ़ने वाला उसे समझेगा ही नहीं तो उसका प्रभाव भी नहीं पड़ेगा। बहुत-सी गजलें तथा शर ऐसे होते हैं, जिन्हें हम शब्दों के अर्थ से अनभिज्ञ होने के कारण समझ नहीं सकते। यदि मद्रास में (रामचरित मानस) का पाठ किया जाय तो हिन्दी का ज्ञान न होने के कारण वे उसकी न महिमा समझेगे, न उसमें निहित सन्देश। जबकि अन्य प्रदेश के लोक अथवा अन्य देश का संगीत (शास्त्रीय) प्रस्तुत किया जाय, उसे वे नहीं समझेंगे, फिर भी उसकी स्वर लहरियों से आनन्दित अवश्य होंगे। यही कारण है कि संगीत (गायन वादन) के कार्यक्रम विदेशों में भी पसन्द किए जाते हैं और सफल होते हैं। अतः यह कहना अनुचित नहीं है कि संगीत का प्रभाव सर्वदेशीय तथा सर्वकालिक है। दूसरी ओर देखें तो भाषा समझ में आने पर भी काव्य को समझना हर एक के बस का नहीं होता। काव्य में इतने क्लिष्ट शब्द व गुप्त अर्थ होता है कि सर्व साधारण के लिए समझना मुश्किल होता है। नीरज, रवीन्द्रनाथ टैगोर, प्रसादजी, महादेवी वर्मा आदि के काव्य उच्च श्रेणी के हैं पर कितने हिन्दी भाषी उन्हें समझ सकते हैं, यह सभी को ज्ञात है। कम पढ़े-लिखे लोगों को भी उनकी रचनाएँ समझ में नहीं आती हैं तो अशिक्षितों के बारे में क्या कहा जाय। इसके विपरीत संगीत की रचना कितनी ही क्लिष्ट हो, आम व्यक्ति यह तो नहीं समझेगा कि कौनसा राग है, कौनसा ताल है, कौनसे स्वर कोमल अथवा शुद्ध लगे, परन्तु सांगीतिक ध्वनियों, स्वर लहरियों, वादक तबले की संगत अथवा गायक तबले की संगत से आनन्दित अवश्य होगा । अरस्तु ने कहा है- "संगीत ध्वनियों के आरोह, अवरोह के माध्यम से मस्तिष्क को भंकृत करता है।" अतः ध्वनि का प्रभाव स्वाभाविक व अनिवार्य रूप से पड़ता ही है। यही कारण है कि संगीत का प्रभाव मूर्ख- विद्वान, शिक्षित-अशिक्षित, भाषी-विभाषी, पशु-मानव सभी पर पड़ता है।
(3) अध्यात्म से सम्बन्ध - भारतीय विचारधारा के अनुसार सभी कलाएँ अध्यात्म की ओर उन्मुख है तथा कलाओं का अन्तिम उद्देश्य अध्यात्म तत्त्व की प्राप्ति है और आत्मतत्त्व में लीन होना है। इस ओर संगीत का अपना विशेष स्थान है। ईश्वर भक्ति की, आत्मज्ञान से परिपूर्ण, जीवन की सच्चाई के सम्बन्ध में अनेक रचनाएँ (काव्य रूप) हमें मिलती हैं, परन्तु वे सभी गेय रूप में हैं। मीरा इकतारे व करताल के साथ प्रभु-ध्यान में लीन होकर गाती थीं। सूर, तुलसी, समस्त अष्टछाप कवि, दादू, कबीर, त्यागराज की रचनाएँ गेय रूप में प्रस्तुती थीं। सोचकर केवल कविता रूप में इनकी रचनाएँ नहीं हैं। इसके अतिरिक्त संगीत से आत्मा पवित्र हो जाती है, उसमें नैतिकता, दया आदि गुणों का विकास होता है। प्लैटो ने कहा है "संगीत के माध्यम से आत्मा लय सीख जाती है, संगीत चरित्र बनाता है, उसमें धर्म की प्रवृत्ति आ जाती है, वह कभी अन्याय कर ही नहीं सकता, क्योंकि वह स्वर-लहरी में बँधा रहता है।" संगीत की स्वर अथवा नाद साधना नाद ब्रह्म प्राप्ति की प्रथम सीढ़ी है और योग-प्राणायाम से इसका सीधा संबंध है, जो ईश्वर प्राप्ति अथवा मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है। भक्ति योग (मोक्ष प्राप्ति का मार्ग) पूर्ण रूप से भजन-संगीत पर आधारित है। अतः संगीत आध्यात्मिकता से जुड़ा है।