तबला वादन प्रकारों की व्याख्या
पल्लू- जिन शब्दों की गति की चाल बिना खण्ड किये तीनबार कहकर सम पर आए उसे पल्लू कहते हैं।
चौपल्ली - जिसके बोलों के खण्ड चार-चार मालुम हों।
पल्टा - तबला या मृदंग पर बजने वाले बोलों के किसी समूह को जब उलट-पलट कर बजाया जाता है, उसे पल्टा कहते हैं।
तीया - किसी भी टुकड़े को ३ बार इस प्रकार बजाया जावे कि उसका अन्तिम धा सम पर आकर पड़े, उसे तीया या तिहाई कहते हैं।
मुखड़ा - किसी टुकड़े को सम से खाली तक अथवा खाली से सम तक बजाने को मुखड़ा कहते हैं।
मोहरा- यह तीया की भांति ही होता है, अर्थात् जब किसी टुकड़े को तीन बार बजाकर सम पर उसकी समाप्ति हो तो उसे मोहरा या तीया कहते हैं।
लग्गी-तबले में आड़ी चाल से जब "धिधाधिन धीनाड़ा" इत्यादि बोल बजाये जाते हैं, उसे लगी कहते हैं।
लड़ी - जिस प्रकार माला की लडी में दाने पिरोये जाते हैं, उसी प्रकार बराबर की लय में ताल के बोलों को चुनकर दुगुन-चौगुन में बार-बार बजाया जाता है, उसे लड़ी कहते हैं।
पेशकार - तबले या मृदंग पर बजने वाले सुन्दर-सुन्दर बोलों कों विशेष प्रकार से बजाकर श्रोताओं के सामने "पेश" करने को पेशकार कहते हैं। पेशकार के बोलों में यह विशेषता होती है कि वे ताल और लय के लहरे पर हिलते हुए एवं आड़दार धक्का देते हुए चलते हैं। इन्हें कुशल तबला वादक ही सफलता पूर्वक दिखा सकते हैं।
आमद-गायन-वादन या नृत्य के साथ तबले या मृदंग पर जब संगत चलती है तो कुछ सुन्दर बोलों को आरम्भ में बजाया जाता है, उसे ही आमद या सलामी कहते हैं।
बोल - तबला या मृदंग पर बजने वाले अक्षरों से निर्मित जो शब्द बनते हैं, उन्हें बोल कहते हैं, जैसे किट, धिन, कड़ान धिड़ान, धा इत्यादि ।
उठान-आमद या सलामी के बोलों को जोरदार तिहाई मारकर जब सम पर आते हैं तब उसे 'उठान' कहते हैं।
नवहक्का-तिहाई को तीन बार बजाकर उसका अन्तिम अक्षर सम पर आवे, उसे नवहक्का कहते हैं।
रेला-एक-एक मात्रा में चार, आठ या अधिक अक्षरों के बोलों को मध्यलय में परन-ताल की किसी भी मात्रा से आरम्भ करके जो बोल सम पर समाप्त होता है, उसको अथवा गृह से सम तक के बाज को परन कहते हैं।