गमक के प्रकार
स्वरस्य कंपो गमकः श्रोतृचित्त सुखावहः ।
तस्य भेदास्तुतिरिपः स्फुरितः कम्पितस्तथा ।।
लीन आन्दोलितवलितत्रिभिन्नकुरुलाहताः ।
उल्लासितः प्लावितश्च हु फितो मुद्रिस्तथा ।।
नामितो मिश्रितः पंचदशेति परिकीर्तिता ।।
अर्थात् -स्वरों का ऐसा कम्पन जो सुनने वालों के चित्त को सुखदायी हो, उसे 'गमक' कहते हैं।
गमक के भेद १५ हैं:- (१) तिरप, (२) स्फुरित, (३) कम्पित, (४) लीन, (५) आन्दोलित, (६) वलित, (७) त्रिभिन्न, (८) कुरुला, (६) आहत, (१०) उल्लासित, (११) प्लावित, (१२) हुंफित, (१३) मुद्रित, (१४) नामित, (१५) मिश्रित ।
दक्षिणी संगीत के ग्रन्थों में गमकों के १० प्रकार निम्निलिखित मिलते हैं:-
(१) आरोह, (२) अवरोह, (३) ढालु, (४) स्फुरित, (५) कम्पित, (६) आहत, (७) प्रत्याहत, (८) त्रिपुच्छ, (६) आन्दोलित, (१०) मूर्छना ।
प्राचीन समय में स्वरों के एक विशेष प्रकार के कम्पन को गमक कहते थे। उस कम्पन को प्रकट करने के लिये जो विभिन्न ढंग उस समय प्रचार में थे, उन्हीं का उल्लेख ऊपर के श्लोक में किया गया है।
वर्तमान समय में यद्यपि गमकों का प्रयोग प्राचीन ढंग से नहीं होता, तथापि किसी न किसी रूप में गमक का प्रयोग हमारे वाद्य संगीत और मौखिक संगीत में होना अवश्य है। खटका, मुर्की, जमजमा, मिंड, सूत, कम्पन, गिटकरी इत्यादि शब्द गमक की ही श्रेणी में आते हैं।
आधुनिक संगीत तज्ञ 'गमक' की व्याख्या इस प्रकार करते हैं: जब हृदय से जोर लगाकर गम्भीरता पूर्वक कुछ कम्पन के साथ स्वरों का प्रयोग किया जाता है, उसे गमक कहते हैं। गमक का प्रयोग अधिकतर ध्रुपद गायन में होता है; किन्तु कोई-कोई गायक ख्याल गायन में भी गमक की तानें लेते हैं। नोमतोम के आलाप में भी जब अन्तिम भाग द्रुतलय का आता है, तो गमक युक्त तानें ली जाती हैं।