भारतीय संगीत में शोध के नये क्षेत्र
1. शोधार्थी को अपनी रुचि के अनुसार निर्देशक की सहमति से शोध का क्षेत्र एवं विषय निर्वाचित करना चाहिए।
2. शोध का विषय समस्यामूलक हो। विषय निश्चित करते समय शोधार्थी को यह देखना चाहिए कि मूल रूप से उसमें कोई समस्या है या नहीं ।
3. साधारणतः विषय की पुनरावृत्ति न हो, किन्तु यदि शोधार्थी और निर्देशक यह अनुभव करते हैं कि विषय पर कुछ नया कार्य होने की प्रबल सम्भावना है तो वही विषय चुना जा सकता है।
4. व्यक्तित्व तथा कृतित्व सम्वन्धी प्रसंग भी शोध के विषय बन सकते हैं। किन्तु इसमें ध्यान रखना चाहिए कि शोधार्थी द्वारा चुना गया विषय प्रारंभिक कार्य ही है। इसके अतिरिक्त व्यक्तित्व तथा कृतित्व में परस्पर कारण-कार्य सम्बन्ध स्थापित करने का भी शोधार्थी को ध्यान रखना चाहिए।
5. नए क्षेत्र या किसी विषय के नए पक्ष पर शोधकार्य करना भी युक्तिसंगत है। यह विषय उस पक्ष की रचना प्रक्रिया को उद्घाटित करता है।
6. शोध का विषय निश्चित करते समय उसे सूत्र रूप में ढालना होता है। सूत्र में विषय का और विषय में समस्या का उल्लेख रहता है। अतः इसके लिए सतर्क चिन्तन की आवश्यकता है, उसमें जरा-सी भी असावधानी होने पर उसमें अतिव्याप्ति, अव्याप्ति अथवा अस्पष्टता आ सकती है जिससे शोधकर्ता उद्देश्य-विहीन हो जाता है।