अभिनव ताल मंजरी
अप्पा तुलसीकृत अभिनव ताल मंजरी के लेखक अप्पा तुलसी हैदराबाद (दक्षिण) के निवासी और निजाम हैदराबाद के दरबारी गायक थे। आप अधिकांशतः ध्रुपद गाते थे। यह प्रसिद्ध संगीताचार्य स्व. भातखण्डे के समकालीन तथा मित्र थे। अप्पा तुलसी संस्कृत के विद्वान् होने के साथ कवि भी थे। आपने संगीत के कई प्रसिद्ध ग्रन्थ 'संगीत सुधाकर', 'राग कल्पद्रुमांकुर,' 'राग चन्द्रिका', 'अभिनव ताल मंजरी' तथा 'राग चन्द्रिकासार' आदि की रचना की। इनमें से 'राग चंद्रिकासार' हिन्दी में तथा अन्य ग्रंथ संस्कृत भाषा में हैं। आपके द्वारा लिखे लगभगसभी ग्रन्थ वर्तमान हिन्दुस्तानी संगीत-पद्धति के आधार- ग्रन्थ माने जाते हैं। अभिनव ताल मंजरी ग्रन्थ में संस्कृत के कुल 130 छन्द हैं। पहले छंद में भगवान राम का स्मरण किया गया है। इस ग्रन्थ में वर्तमान तालों को संगीत रत्नाकार से जोड़ते हुए निम्न 25 तालों का संस्कृत श्लोक, तालांग, मात्रा व घात सहित वर्णन है, जैसे- (1) एकताल, (2) दादरा, (3) तेवरा, (4) रूपक, (5) धुमाली, (6), झम्पा, (7) सुलताल, (8) रुद्रताल, (9) चौताल, (10) विश्वताल, (11) धमार ताल, (12) झुमरा, (13) दीपचन्दी, (14) आड़ा चौताल, (15) सवारी, (16) त्रिताल, (17) विष्णुताल, (18) पुराणताल, (19) शेषताल, (20) गणेशताल, (21) श्रुतिताल, (22) त्रिपुटताल, (23) मागध ताल, (24) ब्रह्मताल इत्यादि बताये गये हैं। उदाहरण के लिए धमार ताल के बारे में उनका कहना है कि 'जनकभाषा' में धमार नाम से प्रसिद्ध जो चौदह मात्रा को ताल है वह शारंगदेव द्वारा 'चण्ड' नाम से कही गयी है। इसमें दो लघुविराम व एक लघु तथा तीन निघात होते हैं जो चतुर मार्दिकों द्वारा विचित्र प्रकार से बजाई जाती है। इसके बाद दूसरा भाग है जिसमें 71 श्लोक हैं। इस भाग में ताल के दस प्राणों का विवेचन है।