पखावज का एकल, स्वंतत्र अथवा मुक्त (solo) वादन
पखवाज की गणना भारत के प्राचरन अनवद्ध वाद्यों में होती हैं। धार्मिक दृष्टि से भी इस वाद्य का अपना विशेष महत्त्व हैं। कई स्थानों पर शहनाई के साथ-साथ इसे भी मंगल वाद्य माना जाता है।अधिकांश पखवाज वादकों का मानना है कि, पखवाज जिसे प्राचीन काल में मृदंग भी कहा जाता है। इसका आविष्कार श्री गणेशजी ने किया । इसीलिए अपनी धार्मिक मान्यताओं और आस्था के कारण अनेक पखवाज वादक गणेश स्तुति या गणेश परन से अपने वादन का आरंभ करते हैं। कुछ पखवाज वादक देव स्तुति परन,सरस्वती परन, दुर्गा अथवा काली परन आदि जैसे रचनाओं से भी अपने वादन का आरंभ करते हैं। यह उनकी धार्मिक आस्था का विषय है। इसीलिए ऐसा कोई नियम नहीं बनाया जा सकता हैं कि इसी परन से वादन का आरंभ हो। वैसे भी संगीत जैसी सृजनात्मक कला को नियमों के बंधन में पूरी तरह नहीं बांध जा सकता हैं।
पखवाज का स्वतंत्र वादन प्रायः चारताल, सूलताल, तीव्रा, धमार और अष्टमंगल आदि तालों में होता है। अच्छे पखवाज वादक प्रायः इन तालों का विविध विस्तार ठेके में प्रयुक्त वर्णों के आधार पर करते हैं।पखवाज में विभिन्न प्रकार के रेलों का वादन प्रमुखता से किया जाता है। धिननक का रेला पखवाजीयें में खूब लोकप्रिय हैं। चूँकी तबले की तरह पखवाज में पेशकार, कायदा और बॉट आदि जैसी रचना नहीं बजती हैं, इसीलिये इसमें विभिन्नप्रकार के रेले बजाए जाते हैं। पखवाज में कईबार रेलो का विस्तार पड़ार के रूप में किया जाता है। परण पखवाज की प्रमुख रचना प्रकार है। अलग-अलग विशेषता वाली परने अलग-अलग नामों से जानी जाती है। सादा, चक्रदार, फरमाईसी, कमाली, बेदम, दम-बेदम, अतीत, अनागत, विभिन्न प्रकार की लयकारी युक्त यति एवं जाति के विभिन्न प्रकारों पर आधारित नाना प्रकार के परमों का वादन स्वतंत्र वादन के समय किया जाता है। प्रडार और लमद्दड बोल प्रकार भी पखवाज को अपनी विशेषता है। अच्छे बोलो, अच्छी रचनाओं को पहले तारी देकर बोलने से और फिर बजाने से साधारण संगीत अनुरागियों की समझ में भी रचनाओं की विशेषतायें आ जाती है और वे उसका पूरा आनंद उठा पाते हैं।
हमारा भारतीय संगीत जीवन और प्रकृति दोनों गहराई से जुड़ा है। पखवाज की विभिन्न रचनाओं को इसके प्रमाण स्वरूप देखा जा सकता है। पखवाज पर स्वंतत्र वादन के दौरान मेघ परन, कड़क बिजली परन, गेंद उद्दाल परन, रास परन, महाराम परन, होली परन, शिव तांडव परन, मदन दहन परन, और कालियादमन परन के साथ-साथ बाज बहेरी परन आदि जैसी विभिन्न प्रकार की परनें खूब बजती हैं। हालांकि ये सभी रचनायें पखवाज के वर्षों से निर्मित होती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार की ध्वनि वाले गुंजनयुक्त लयकारियों वाल बोलों का समावेश होता हैं। लेकिन इस पर सार्थक और अर्थपूर्ण शब्दों का आवरण चढ़ा देने से वह अमूर्त से मूर्त हो जाता हैं और उसका आकर्षण बढ़ जाता है और वह खास लोगों के साथ-साथ आम लोगों के भी आकर्षण का केंद्र बन जाता है।
पखवाज पर स्वतंत्र वादन करते समय इस बात का भी ध्यान रखना उचित होगा कि, श्रोता, दर्शकों में किस प्रकार के लोग हैं, उन्हें किस प्रकार की रचनाएं अधिक आनंदित कर रहीं हैं? उसी प्रकार के बोलो पर अधिक बल देना चाहिये क्योंकि, कलाकार अपने श्रोता, दर्शकों के लिए ही अपने संगीत की प्रस्तुति करता है।