पाश्चात्त्य अवनध्द वाद्य
पाश्चात्य वाद्य यंत्रों को भी भारतीय संगीत वाद्यों की तुलना में इनकी संगीत सीमाद्वारा वर्गीकृत किया जाता है। जैसे कि
१) सोप्रानो वाद्य व्हायोलिन, कॉर्नेट, फ्युगेल हॉर्न आदी
२) ऑल्टो ( ऑल्टो मैक्सोफोन, ऑल्टो हॉर्न )
३) टेनर वाद्य (ट्रोम्बोन आदी)
४) बैरीटोन वाद्य (असून, बास क्लैरिनेट आदि)
५) बास वाद्य (कोटा वसून, डबल बास, आदी )
६) कॉन्ट्रा बास वाद्य (कॉन्ट्रा बास सैक्सोफोन आदी)
इन वाद्य यंत्रो का निर्माण एक विशेष व्यवसाय है। जिसके लिए वर्षों का प्रशिक्षण और अभ्यास की आवश्यकता होती हैं। पश्चात्त्य अवनध्द वाद्यों में कुछ महत्वपूर्ण वाद्य जो फिल्म संगीत में अक्सर प्रयोग होते हैं, उनकी जानकारी नीचे दे रहे हैं। भारतीय संगीत में उनके पाश्चात्य वाद्यों का प्रचार बढ़ा है। पाक्षात्य वाद्य क्लॅरिनेट, ट्रम्पेट, गिटार, पियानो, की-बोर्ड, साईड ड्रम, कैटिल ड्रम, बोंगो, कांगो, झायलो फोन, ऑक्टोपड झेंबे आदि हैं। इन वाद्यों में ताल देनेवाले वाद्यो का विस्तृत उल्लेख इसप्रकार है।
अ) कैटिल ड्रम (Cattle drum) इस दो नगीय वाद्य को टीमपैनी भी कहते है। यह एक प्रकार के स्टँडपर आधारित होता है। इसका मुख्य अंग गोलाकार पीतल का बना होता है। यह उपर से खाल से आच्छादित होता है। इसे दो छड़ियों से आघात करके बजाया जाता है। इसका प्रयोग पाश्चात्त्य संगीत, फिल्म संगीत के आलावा वाद्यवृंद में भी किया जाता है। इसका प्रयोग सिंफनी संगीत के लिए विशेष उपयुक्त रहता है।
ब) बास ड्रम (Bass drum) इसका बेलनाकार भाग पीतल, तांब आदि धातु के बने होते हैं। जिसके ऊपर चमड़ा या सिंथेटिक डायफ्राम मड़ा हुआ होता है। इसके दोनों मुखों के चारों ओर स्क्रू लगे होते है, जिनसे वाद्य को कसा या ढीला किया जाता हैं। इसका प्रयोग भारत में प्राय: बँड मे, ऑर्केस्ट्रा में किया जाता है ।
क) सोनार ड्रम (Sonar Drum) - इसे साईड ड्रम भी कहते है । बास ड्रम के समान यह भी एक नगीय वाद्य है। इसे दो छड़ियों से आघात कर बजाया जाता है। इसकी ध्वनि बास ड्रम की तुलना में ऊँची गति तेज होती है। इसका प्रयोग भी अन्य की तरह ऑर्केस्ट्रा आदि के लिए होता है।
ड) बोंगो (Bongo) - वर्तमान में पाश्चात्य संगीत में लयधारणा के लिए जिन अवनध्द वाद्यों का अधिक प्रचलन है, उनमें बोंगो एक प्रमुख वाद्य हैं। भारतीय सिनेसंगीत में इस वाद्य का प्रयोग होता है। इसपर विदेशी तालांकन के अनुसार २- ३, ३-४, २-२, ३-३ आदि मात्राओं के मेल से लयधारणा की जाती है।
इ) कोंगो - बोंगो समान ही कोंगो भी वर्तमान पाश्चात्य संगीत के अवनध्द वाद्यों में प्रमुख वाद्य है। यह बोंगो से काफी बड़ा होता है। कोंगो के तीन अंग होते हैं। ये तिनों अंग क्रम से बड़ा, मध्यम और छोटा होते हैं। इन तीनों मुखों पे मोटी, मध्यम तथा पतली चमड़ी की पूड़ी चढ़ाई जाती है। कोगों को सुविधानुसार अलग-अलग प्रकारों के स्वरों में मिलाया जाता है। जैसे पहला सा, दूसरा रे, तीसरा ग, अथवा पहला सा, दूसरा प और तीसरा सा - कोंगो के तिनो अंग आपस में जुड़े रहते हैं इनको खड़ा करने के लिए नीचे स्टैंड लगाया जाता है। भारतीय सिनेसंगीत में इनका प्रयोग अक्सर होता है। स्टैंड वर्तमान में पाश्चात्य तालवाद्यों में से ड्रमसेट के उपर कुछ कलाकार उत्तरभारतीय तालशास्त्र की अनेक बंदिशों को बजाने का प्रयोग कर रहे हैं। वर्तमान के “फ्यूजन''इस संगीत प्रकार में उत्तर भारतीय संगीत तथा तालवाद्य तथा पाश्चात्य तालवाद्यों का मेल बहोत सुंदर तरीके से कर रहे हैं |