प्रभावकारक तबलावादन के गुणतत्त्व
तबलावादन की प्रस्तुतीकरण में कुछ अंश कला का तो कुछ शास्त्रका हुआ करता है। वादन के माध्यम से सुंदरता निर्माण करना कला का उद्देश होता है। परंतु, तालशास्त्र का समुचित ज्ञान होना भी उसके लिए आवश्यक है। वादन के दो अंग होते हैं। कला (Art) और कारागिरी (Craft)। कला में मौलिक सौंदर्यनिर्मिती निहीत होती हैं। तो कारीगिरी में कौशल अभिप्रेत हैं। अतः कुछ कलाकारों का सोलोवादन कलात्मक होता हैं । तो किसी का केवल कौशल्यपूर्ण । कभी-कभी केवल शास्त्र से भरा हुआ तबलावादन ही हमे सुनने को मिलता है। शास्त्रीय तबलावादन बुद्धि को सुख देता है। तो कलात्मक एवम् कारीगरी से युक्त हृदय को भी सुख प्रदान करता हैं। एक बात निश्चित हैं कि कलानिर्मिती के लिए प्रतिभा के पारसस्पर्श की आवश्यकता होती है। तबलावादन के कुल प्रस्तुतिकरण में सौंदर्य एवम् नवनिर्मितीपूर्ण कला केवल १० से १५ प्रतिशत ही हो सकती है। शेष ८५ से ९० प्रतिशत प्रस्तुतीकरण कारागिरी और शास्त्र से संबंधित होता है। अतः कारीगरी के बिना मात्र कला आकर्षक रूपमें प्रस्तुत नही की जा सकती। इसलिए कलाकार को कारीगरी, मतलब वादन कुशलता में प्राविण्य प्राप्त करना आवश्यक है। ऐसा वादन कौशल अनुशासनबद्ध, जागरुक, एवम् सातत्यपूर्ण रियाज से ही पूर्ण होता है। अतः कला के उत्कृष्ट प्रस्तुतीकरण के लिए रियाज का होना निःसंदेह अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
प्रतिभाशाली और समर्थ कलाकारों के वादन में जगह-जगह होने वाली सौंदर्य की अनुभुती के फलस्वरूप हम आनंदीत होते हैं। सौंदर्य की यह अभिव्यक्ति तबलावादन में विविध रुप मे होती हैं। उदाहरणतः तबले की रचना की काव्यमयता, तबलावादन का सौंदर्य बढ़ाती है। तबलावादन करते समय घरानों के अनुशासनबद्ध विचार तथा विस्तार की वजह से वादन का सौंदर्य बढ़ता है। अगर तबलावादन करते समय योग्य निकास का प्रयोग होता है, तोही उचित नादनिर्मिती हो सकती हैं।तबलावादन करते समय उसके विविध तालअंगों का विचार, जैसे की खाली-भरी का भी उचित विचार होना आवश्यक हैं। प्रभावशाली तबलावादन करने के लिए बजाई जानेवाली रचना, उनका गणितीय विश्लेषण, तथा उचित विचार होना आवश्यक हैं। वादन प्रभावी हो इसके लिए रचना के गतिसौदर्य का भी विचार होना आवश्यक है | इन सभी अंगों का अनुशासनयुक्त प्रयोग ही तबलावादन में रसनिष्पत्ती उत्पन्न कर सकता हैं। तबलावादन की रचनाओं को ठिक तरह से समझने के लिए उनकी योग्य तरह से पढंत होना भी आवश्यक हैं। तबलावादन के इन विविध सौंदर्यस्वरूपों का अध्ययन करना और इनके गुणतत्त्वों को आत्मसात करना तबले के विद्यार्थी के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसीप्रकार योग्य अध्ययन और मनन चिंतन के जरिए तबलावादन अधिक प्रभावशाली और सौदर्यशालि हो सकेगा।