गायक के गुण / अवगुण

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गायक के गुण / अवगुण 

गायक के गुण 

(1) मधुर कण्ठ- गमक, कण और मींड लेने योग्य मधुर और सुरीला कण्ठ होना, कम से कम अभ्यास में गाने योग्य होना बहुत बड़ा गुण है।

(2) शुद्ध उच्चारण- आवाज लगाने तथा गीत के शब्दों का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट होना चाहिये।

(3) स्वर और श्रुति ज्ञान - राग में प्रयोग किये जाने वाले सभी स्वरों तथा श्रुतियों को समझने तथा गाने की क्षमता हो ।

(4) लय और ताल ज्ञान - गायक लयदार हो और उसे सभी प्रचलित तालों का अच्छा ज्ञान हो ।

(5) राग ज्ञान- अधिक से अधिक रागों का सूक्ष्म ज्ञान हो। केवल इतना ही नहीं बल्कि समप्रकृति रागों से बचना, अल्पत्व बहुत्व तथा तिरोभाव- आविर्भाव दिखाने की क्षमता हो।

(6) समुचित अभ्यास कम से कम इतना अभ्यास तो होना ही चाहिये कि वह अपने मन के अनुसार तान-आलाप इत्यादि गा सके। 

(7) स्वर, लय और भाव का सुन्दर समन्वय गायक में यह गुण होना चाहिये कि वह अपने गायन में स्वर, लय और भाव तीनों को उचित स्थान दे।

(8) रचनात्मक शक्ति - गायक में यह गुण होना चाहिये कि वह उसी समय सुन्दर तान-आलाप आदि की रचना कर सके और उनकी पुनरावृत्ति न हो।

(9) श्रम-रहित और एकाग्रचित्त होकर गाना गाते समय श्रोताओं को यह अनुभव न हो कि गायक को बड़ा परिश्रम करना पड़ रहा है और उसका चित्त एक स्थान पर स्थिर नहीं होता है।

(10) जन-मन-रंजन गायक में यह क्षमता होनी चाहिये कि श्रोता उसके गायन पर मुग्ध हों। उसके गाने से जनता का मनोरंजन होना चाहिये। केवल कलात्मक चमत्कार पर्याप्त नहीं है। 

गायक के अवगुण 

(1) कर्कश कंठ - रूखे और तीखे कण्ठ का प्रभाव अच्छा नहीं पड़ता। श्रोताओं पर प्रथम प्रभाव कण्ठ का पड़ता है। कर्कश कण्ठ वाला व्यक्ति कितना ही कलापूर्ण गाये, श्रोता पर उसका प्रभाव बहुत अच्छा न पड़ेगा।

(2) बेसुरा गाना • राग के स्वर अपने स्थान पर ने लगें।


(3) स्वर और शब्दों का त्रुटिपूर्ण उच्चारण- आवाज कंपाना, दांत दबाकर गाना, नाक से स्वर निकालना, शुद्ध आकार न होना, शब्दों को ठीक से उच्चारण न करना आदि।

(4) राग की अशुद्धता - अशुद्ध राग गाना

(5) बेताल और बेलय - गाते समय बेताल और बेलय होना ।

(6) समुचित अभ्यास की कमी - उचित अभ्यास की कमी।

(7) पुनरावृत्ति दोष- एक बार प्रयोग किये गये स्वर समूहों को बार-बार दोहराना।

(8) मुद्रा दोष - गाते समय मुंह बनाना, हाथ टेकना, कान पर हाथ रख कर गाना, आँख बन्द कर गाना इत्यादि ।

(9) अव्यवस्थित गाना - गाना क्रमहीन होना।

(10) आत्म-विश्वास की कमी भयभीत होकर गाना, शीघ्र ही अपनी सब करामात दिखाकर गाना समाप्त करना ।





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