जलतरंग: एक अद्भुत और विलुप्त होती भारतीय वाद्य परंपरा

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🎶 जलतरंग: एक अद्भुत और विलुप्त होती भारतीय वाद्य परंपरा 

परिचय:

भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा में कई ऐसे दुर्लभ वाद्य यंत्र हैं जो अपनी विशिष्ट ध्वनि और शैली के कारण संगीतप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इन्हीं में से एक है जलतरंग — एक पारंपरिक, सौंदर्यपूर्ण और विलक्षण वाद्य यंत्र, जिसकी मधुर ध्वनियाँ आज भी शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव कराती हैं।

जलतरंग क्या है?

‘जलतरंग’ दो शब्दों से मिलकर बना है — जल अर्थात पानी और तरंग यानी लहर। यह एक ऐसा वाद्य यंत्र है जिसमें चीनी या चीनी मिट्टी के प्यालों में अलग-अलग मात्राओं में पानी भरकर, उन्हें एक खास ढंग से लकड़ी की छड़ी से बजाया जाता है। पानी की मात्रा से सुर बदलते हैं और इस तरह स्वरों की रचना होती है।

इतिहास और उत्पत्ति:

जलतरंग का उल्लेख प्राचीन संगीत ग्रंथों में भी मिलता है। माना जाता है कि इसका प्रयोग भारतीय उपमहाद्वीप में 17वीं शताब्दी से पहले से हो रहा था। यह मुख्यतः दक्षिण भारत और उत्तर भारत दोनों की शास्त्रीय परंपरा में प्रयुक्त हुआ है।

जलतरंग की बनावट:

इसमें आमतौर पर 16 से 22 प्यालों का प्रयोग होता है।

प्यालों को अर्धवृत्ताकार क्रम में सामने रखा जाता है।

प्रत्येक प्याले में पानी की मात्रा सुर के अनुसार तय की जाती है।

संगीतज्ञ दो पतली छड़ियों से इन प्यालों को हल्के से बजाकर ध्वनि उत्पन्न करता है।

विशेषताएँ:

1. ध्वनि की कोमलता: जलतरंग की ध्वनि अत्यंत मधुर, शीतल और शांतिप्रद होती है।

2. दृश्य सौंदर्य: इसका बजाना एक दृश्य कला की तरह भी आकर्षक होता है।

3. सरल दिखने वाला, कठिन वादन: जलतरंग को सुनना भले ही सुखद लगता हो, लेकिन इसे सही सुरों में बजाना अत्यंत कठिन है।

प्रयोग और प्रसिद्ध कलाकार:

जलतरंग का प्रयोग मुख्यतः शास्त्रीय संगीत में किया गया है, लेकिन इसका उपयोग फिल्म संगीत और शांति संगीत में भी होता रहा है।

प्रसिद्ध जलतरंग वादकों में पं. श्रीधर पारसनीस, पं. नारायणन, और पं. एन. रामचंद्रन का नाम लिया जा सकता है।

आज की स्थिति:

आज के समय में जलतरंग वादन दुर्लभ होता जा रहा है। बहुत कम कलाकार इसे सीखते हैं और मंचों पर प्रस्तुत करते हैं। तकनीकी व आधुनिक वाद्य यंत्रों के प्रभाव से यह कला धीरे-धीरे लुप्त हो रही है।

संरक्षण की आवश्यकता:

भारतीय शास्त्रीय संगीत की इस दुर्लभ धरोहर को सहेजने और युवा पीढ़ी तक पहुँचाने की आवश्यकता है। संगीत संस्थानों, विद्यालयों और कलाकारों को चाहिए कि वे जलतरंग को अपने पाठ्यक्रम और प्रस्तुतियों में स्थान दें।

निष्कर्ष:

जलतरंग न केवल एक वाद्य यंत्र है, बल्कि यह भारतीय संगीत परंपरा की कोमलता और गहराई का प्रतीक भी है। इसकी प्रत्येक तरंग में एक अध्यात्मिक स्पर्श होता है। आइए, हम सब मिलकर इस विलुप्त होती धरोहर को पुनः जीवित करें।


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