वारकरी संगीत में रागों की भूमिका

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वारकरी संगीत में रागों की भूमिका

भारतीय संगीत में रागों का एक महत्वपूर्ण स्थान है, और जब हम वारकरी संगीत की बात करते हैं, तब भी रागों की विशिष्ट भूमिका होती है। वारकरी संप्रदाय की संगीत परंपरा का मुख्य उद्देश्य भक्ति, अध्यात्म और भजन के माध्यम से परमात्मा से संपर्क स्थापित करना है। इसमें रागों का प्रयोग बहुत ही सुक्ष्म और भावनात्मक रूप से किया जाता है ताकि श्रोता और साधक दोनों को गहन भक्ति और अध्यात्म का अनुभव हो सके।


वारकरी संगीत का संक्षिप्त परिचय

वारकरी संप्रदाय में संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत नामदेव और अन्य संतों के अभंग, ओवी, भजन और गाथाएँ गाई जाती हैं। इन गीतों के माध्यम से भगवान विठोबा की आराधना की जाती है। वारकरी संगीत में प्रमुख रूप से ऐसे रागों का चयन किया जाता है जो शांत, मधुर और भक्तिपूर्ण भाव उत्पन्न करते हैं।


वारकरी संगीत और रागों का संबंध

राग भारतीय शास्त्रीय संगीत का आधार होते हैं, जो दिन के विभिन्न समयों और भावनात्मक अवस्थाओं के अनुसार गाए जाते हैं। वारकरी संगीत में भी रागों का चयन संतुलित और संवेदनशीलता के साथ किया जाता है ताकि भक्ति की गहनता को व्यक्त किया जा सके।

  1. भक्तिरस में राग: वारकरी संगीत में 'भक्तिरस' या भक्ति के भाव को बढ़ाने के लिए रागों का चयन किया जाता है। जैसे कि राग यमन, राग भैरव, और राग मालकौंस जैसे राग इस संगीत में प्रमुख रूप से गाए जाते हैं क्योंकि इन रागों का स्वभाव भक्तिपूर्ण होता है। यह राग श्रोताओं को ध्यान की गहराई में ले जाते हैं और भक्ति का अनुभव कराते हैं।

  2. रागों का समय और वातावरण: रागों का प्रयोग इस आधार पर किया जाता है कि वे किस समय और किस वातावरण में गाए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, प्रातःकाल में गाए जाने वाले राग जैसे राग भैरव, वारकरी संगीत में प्रातः आरती या पूजा के समय गाए जाते हैं। इसी प्रकार संध्या समय में राग यमन जैसे रागों का प्रयोग किया जाता है जो संध्याकालीन भजन और आराधना के लिए उपयुक्त होते हैं।

  3. अभंगों में राग: संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर द्वारा रचित अभंगों को गाते समय रागों का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि उनकी भावनाओं और संदेश को सही ढंग से व्यक्त किया जा सके। अभंगों में रागों का चयन इस प्रकार किया जाता है कि वे भक्ति के साथ-साथ श्रोताओं के मन को शांति और संतोष प्रदान कर सकें।

  4. सरलता और भावनात्मकता: वारकरी संगीत में रागों का प्रयोग बहुत ही सरल और भावनात्मक रूप से किया जाता है ताकि यह संगीत आम जनमानस तक पहुँचे और वे इस संगीत का अनुभव कर सकें। इसमें अधिक जटिलता के बजाय साधारणता और सरलता को महत्व दिया जाता है, ताकि संगीत की गहराई भक्ति के माध्यम से सीधे आत्मा तक पहुँचे।


वारकरी संगीत में रागों का प्रभाव

रागों का वारकरी संगीत में प्रभाव इतना गहरा होता है कि यह श्रोताओं और साधकों को भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। रागों का सही और संवेदनशील प्रयोग श्रोताओं को भगवान विठोबा के प्रति समर्पण और प्रेम का अनुभव कराता है। इससे संगीत न केवल एक कला रूप में बल्कि एक साधना के रूप में उभर कर सामने आता है।


निष्कर्ष

वारकरी संगीत और रागों का संबंध अत्यंत गहरा और आध्यात्मिक है। यह संगीत परंपरा न केवल एक कला है, बल्कि एक भक्ति की साधना है जो संतों द्वारा स्थापित की गई थी। भारतीय संगीत के विभिन्न रागों का वारकरी संगीत में जो प्रयोग होता है, वह श्रोताओं को भक्ति, प्रेम, और अध्यात्म के मार्ग पर अग्रसर करता है।


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