ताल और कथक का संबंध

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ताल-कथक

ताल और कथक का संबंध

भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली "कथक" में ताल का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण स्थान है। कथक, जो उत्तर भारत की प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक है, अपने भावपूर्ण अभिनय, घुमावों, और तालबद्ध पैरों की गतियों के लिए प्रसिद्ध है। इस नृत्य शैली में ताल का न केवल तकनीकी बल्कि भावनात्मक भी विशेष महत्व है, क्योंकि यह नर्तक और संगीत के बीच सामंजस्य को प्रकट करता है।

ताल क्या है?

ताल संगीत की वह लय होती है, जिसके आधार पर पूरी संगीत रचना होती है। भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य में ताल एक मापदंड की तरह होती है, जो संगीत के प्रवाह और गति को नियंत्रित करती है। प्रत्येक ताल की एक निश्चित मात्रा होती है, जिसे "मात्रा" कहते हैं, और इसे ताली, खाली, और विभाजन के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। कथक में प्रचलित तालों में तीनताल (16 मात्रा), झपताल (10 मात्रा), द्रुत एकताल (12 मात्रा), रूपक ताल (7 मात्रा), और कहरवा (8 मात्रा) प्रमुख हैं।

कथक में ताल की भूमिका

  1. लयबद्धता का आधार: कथक में ताल ही वह ढांचा है, जिसके अंतर्गत नर्तक या नर्तकी अपनी सारी गतियाँ प्रस्तुत करता/करती है। कथक के हर एक पद, मूवमेंट, और हाथ की मुद्रा ताल के साथ बंधी होती है। यह ताल ही नर्तक को अनुशासन और संतुलन प्रदान करती है।

  2. तालियों और पदचाप की तालमेल: कथक नृत्य में तालियों और पैरों की थाप (जिसे 'घुंघरू' द्वारा सुनाया जाता है) ताल के अनुरूप होती है। ये दोनों ताल के प्रवाह के साथ तालमेल बिठाकर एक सुगठित और गतिशील प्रदर्शन प्रस्तुत करते हैं। तालियों का विशेष महत्व है, क्योंकि यह नर्तक के भावों और आंदोलनों के साथ ताल का निरंतर संवाद स्थापित करती हैं।

  3. आवर्तन और सम: कथक नृत्य में ताल का विशेष महत्व तब होता है जब नर्तक "आवर्तन" (ताल का एक पूरा चक्कर) पूरा करता है और उसे "सम" (ताल का पहला बीट) पर समाप्त करता है। सम पर नर्तक का सही समय पर पहुँचना तकनीकी कौशल और ताल के गहन ज्ञान को दर्शाता है।

कथक और ताल की विविधता

कथक में ताल की विविधता नृत्य की विविधता को दर्शाती है। कथक नृत्यकार ताल की लय और गति के साथ खेलने की क्षमता रखता है। वह कभी ताल के बीट्स को द्रुत लय (तेज) में प्रस्तुत करता है, तो कभी विलंबित लय (धीमी गति) में। यह ताल के साथ नर्तक की रचनात्मकता का प्रदर्शन होता है।

  1. तीनताल: यह सबसे प्रमुख ताल है, जिसका प्रयोग कथक में बहुत अधिक किया जाता है। इसमें 16 मात्राएँ होती हैं और इसे चार भागों में बाँटा जाता है। तीनताल में प्रस्तुत गतियाँ, टुकड़े और चक्कर नर्तक की लयबद्धता और तालबद्धता का सजीव प्रदर्शन करते हैं।

  2. झपताल: झपताल 10 मात्राओं की ताल होती है, जिसमें नर्तक अपनी गतियों में विविधता और ताल के प्रति गहराई को दर्शाता है। इसका उपयोग कथक के विस्तृत नृत्य रूपों में किया जाता है।

ताल और भावनाओं का संचार

ताल का कथक में केवल तकनीकी महत्व नहीं है, बल्कि यह भावनाओं का भी वाहक है। कथक में विभिन्न तालों का उपयोग नर्तक को अपनी भावनाओं और कथानक को अभिव्यक्त करने का साधन देता है। उदाहरण के लिए, तीनताल की स्थिरता और संतुलन नर्तक को गंभीर और स्थिर भाव प्रस्तुत करने में मदद करती है, जबकि द्रुत लय का प्रयोग जोश और ऊर्जा को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।

निष्कर्ष

कथक और ताल का संबंध गहरा और अभिन्न है। ताल नर्तक को अनुशासन, स्थिरता, और भावनात्मक संचार का साधन देती है। यह केवल लय का पैमाना नहीं है, बल्कि नर्तक के रचनात्मक और भावनात्मक प्रदर्शन का आधार भी है। ताल और कथक का यह अनूठा संबंध नर्तक को संगीत और नृत्य के साथ गहरे संवाद में लाता है, जिससे एक अद्वितीय और भावपूर्ण प्रस्तुति जन्म लेती है।


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