भारतीय अवनद्ध वाद्य : विभिन्न प्रकार और उनके विशेषता – भाग 2

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भारतीय अवनद्ध वाद्य

 विभिन्न प्रकार और उनके विशेषता – भाग 2

अवनद्ध वाद्य की निर्माण प्रक्रिया पर जानकारी के बाद, इस भाग में हम प्रमुख भारतीय अवनद्ध वाद्य, उनके स्वरूप, तकनीक, और संगीत में उनकी भूमिका पर विस्तार से बात करेंगे।

1. तबला

तबला भारतीय संगीत का सबसे लोकप्रिय अवनद्ध वाद्य है। यह दो हिस्सों में विभाजित होता है:

  • दायाँ (दग्गा): लकड़ी का बना होता है और इसमें मध्य सुर ध्वनि होती है।
  • बायाँ (बायाँ हिस्सा): धातु या मिट्टी का बना होता है और इसमें भारी बेस सुर उत्पन्न होता है।

तबले के "सियाही" में लगाने से ध्वनि की गहराई और अनुगूंज बढ़ती है, जिससे तबला संगीत में अद्वितीय लय और ताल उत्पन्न करता है।

2. पखावज

पखावज भारतीय शास्त्रीय नृत्य, विशेषकर कथक और ओडिसी नृत्य शैलियों में विशेष भूमिका निभाता है। यह दोनों सिरों पर चौड़ा होता है और मध्य में पतला होता है। पखावज को बजाने के लिए दोनों हाथों का प्रयोग किया जाता है और इसकी थापें ताल में मर्दंगता और स्थायित्व का प्रतीक मानी जाती हैं।

3. मृदंग

मृदंग का प्रमुख स्थान दक्षिण भारतीय संगीत और कर्नाटिक संगीत में है। इसकी बनावट पखावज से मिलती-जुलती है, लेकिन इसके सुर और लय में अलग-अलग धुनें बजाई जाती हैं। मृदंग की ध्वनि में शुद्धता और शांति होती है, जिससे इसे आध्यात्मिक और धार्मिक संगीत में प्राथमिकता दी जाती है।

4. ढोलक

ढोलक आमतौर पर लोकसंगीत और भजन कीर्तन में उपयोग किया जाता है। इसका आकार गोलाकार होता है और इसे दोनों सिरों पर चमड़े से मढ़ा जाता है। ढोलक की गूंजदार ध्वनि इसे समूह गायन और उत्सवों में लोकप्रिय बनाती है।

5. डमरू

डमरू एक छोटा अवनद्ध वाद्य है जो मुख्यतः धार्मिक कार्यों और शिव उपासना में प्रयोग किया जाता है। इसका आकार छोटे घंटे जैसा होता है और इसमें दोनों सिरों पर चमड़े की परत मढ़ी होती है। डमरू का बजाना सरल होता है और यह तेज लय में आवाज उत्पन्न करता है।

अवनद्ध वाद्य और भारतीय संगीत का तालमेल

अवनद्ध वाद्य भारतीय संगीत के विभिन्न पहलुओं को संजीवनी प्रदान करते हैं। ये न केवल लय और गति में संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि संगीत में भावनाओं की अभिव्यक्ति को भी निखारते हैं। अवनद्ध वाद्यों में होने वाली तालों की विविधता से हर वाद्य अपनी एक अनोखी पहचान बनाता है। उदाहरण के लिए, तबला और पखावज की थापें ताल और लय को संजीवित करती हैं, जबकि मृदंग की मधुर ध्वनि शांत रस की अनुभूति कराती है।

निष्कर्ष

भारतीय अवनद्ध वाद्य यंत्र शास्त्रीय और लोक संगीत दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनकी निर्माण प्रक्रिया और उनके स्वरों की विशेषता भारतीय संगीत को एक नई ऊँचाई पर पहुँचाती है। अवनद्ध वाद्य की बहुमूल्यता भारतीय संगीत में हमेशा से बनी रहेगी, और इसका अध्ययन संगीत की गहराई को समझने का माध्यम है।


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